ऐ इन्सानो! इबादत (बन्दगी, वंदना) करो अपने रब की जिसने तुमको पैदा किया और उनको जो तुमसे पहले हुए हैं - ताकि तुम जहन्नम (नर्क, दोजख) से बचे रहो। उस परवरदिगार की इबादत करो, जिसने तुम्हारे लिए जमीन को फर्श बनाया और आसमान को छत की तरह ऊँचा किया। फिर ऊपर से पानी बरसाया और इससे तरह-तरह के फल तुम्हारे खाने के लिए पैदा किए।
बकर 2: 21-22
और मैंने जिन्नों और इन्सानों को पैदा ही इसलिए किया कि वे मेरी इबादत करें।
जारियात 51: 56
नमाज कायम करो और मुशरिकों में न हो जाओ।
रूम 30: 32
कह दीजिए हकीकत में सही रहनुमाई (मार्गदर्शन) तो बस अल्लाह ही की रहनुमाई है और उसकी तरफ से हमें यह हुक्म मिला है कि कायनात (ब्रह्माण्ड) के मालिक के आगे इताअत (बन्दगी) में सिर झुका दें। नमाज कायम करें। इसका तकवा (परहेजगारी और अल्लाह का डर) अपनाओ और वही है जिसकी तरफ इकट्ठे किए जाओगे।
अनआम 6: 71-72
हिदायत है उन मुत्तकियों के लिए जो गैब (अज्ञात, छिपी हुई बातें) पर ईमान लाते हैं और नमाज कायम करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से खर्च करते हैं।
बकर 2: 2-3
बहिश्त (स्वर्ग) वाले पूछ रहे होगें जहन्नमी (नर्क में रहने वाले) मुजरिमों से 'किस चीज ने तुम्हें दोजख में ला डाला ?' वे जवाब देगें 'हम नमाज न पढ़ते थे।'
मुद्दस्सिर 74 : 40-43
पस अगर ये तौबा कर लें और नमाज कायम करें और जकात दें तो यह तुम्हारे दीनी भाई हैं।
तौबा 9: 11
ये (मोमिनीन) वे लोग हैं कि अगर हम इन्हें जमीन पर सत्ता और हुकुमत दें तो यह नमाज कायम करेंगे और जकात अदा करेंगे भलाई का हुक्म देंगे और बुराई से रोकेंगे।
हज 22: 41
और जो लोग अपनी नमाज की हिफाजत करते हैं, ये लोग इज्जत के साथ जन्नत के बागों में रहेंगे।
मआरिज 70 : 34-35
और नमाज कायम करो यकीनन नमाज फहश (बेशर्मी) और बुरे कामों से रोकती है।
अनकबूत 29 : 4-5
तबाही है उन नमाजियों के लिए जो अपनी नमाज से गफलत बरतते हैं।
माऊन 107: 4-5
नमाज वास्तव में ऐसा फर्ज है जो समय की पाबंदी के साथ ईमान वालों पर वाजिब किया गया है।
निसा 4: 103
और अपने रब की तारीफ के साथ तसबीह बयान कीजिए सूरज निकलने से पहले और उसके गुरूब (छिपने) होने से पहले और रात की घडिय़ों में फिर तसबीह (नमाज) अदा कीजिए और दिन के किनारों पर।
हूद 11: 114
नमाज कायम कीजिए सूरज के ढलने के वक्त से रात के अंधेरे तक और फज्र का कुरआन पढने का एहतमाम कीजिए । बेशक कुरआन हाजरी का वक्त है।
बनी इस्राईल 17: 78
और अपनी नमाज न बहुत ऊँची आवाज से पढ़ो और न बहुत धीमी आवाज से, इन दोनों के दरमियान औसत दरजे का लहजा अपनाओ ।
बनी इस्राईल 17: 110
कामयाब हो गए ईमान वाले जो अपनी नमाज में खुशू इख्तियार करते हैं। जो बेहूदा बातों से दूर रहते हैं। जो जकात अदा करने वाले हैं। जो अपनी शर्मगाहों की हिफाजत करने वाले हैं, सिवाय अपनी बीवियों के और लौण्डियों के। कि उनसे ताल्लुक रखने में उन पर कोई इल्जाम नहीं। जो उनके सिवाय और चाहे वही अल्लाह की मुकर्रर की हुई हदों से निकल जाने वाले हैं। जो अपनी अमानतों और वादे की हिफाजत करने वाले हैं। जो अपनी नमाजों की निगहबानी करते हैं।
मोमिनून: 23 1-9
ऐ ईमान वालो! मदद हासिल करो सब्र और नमाज से।
बकर 2: 153
और रात के कुछ हिस्से में तहज्जुद पढ़ा कीजिए यह आपके लिए मजीद (फजल) है।
बनी इस्राईल 17: 79
मोमिनो! जब जुमे के दिन नमाज के लिए अजान दी जाए तो अल्लाह की याद की तरफ झपट जाया करो और खरीद-फरोख्त छोड़ दिया करो। यह तुम्हारे हक में बेहतर है, अगर तुम समझ से काम लो ।
जुमुआ 62: 9
पस नमाज कायम करो, जकात अदा करो और अल्लाह से वाबिस्ता हो जाओ (जुड़ जाओ)।
हज 22: 78
और सजदा करो और (अल्लाह से) करीब हो जाओ
अलक- 96: 19
और रुकू करो, रुकू करने वालों के साथ।
बकर 2- 2:43
ऐ आदम की औलाद ! हर नमाज के मौके पर अपनी जीनत का लिबास पहन लिया करो और खाओ और पीओ और बेजा न उड़ाओ ।
आराफ 7: 31
और मेरी याद के लिए नमाज कायम करो ।
ताहा 20: 14
और जब तुम सफर पर निकलो तो इस में कोई हर्ज नहीं है कि नमाज को कसर (छोटा) कर दो । (जहाँ फर्ज चार हो दो कर दो )
निसा 4: 101
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें