ऐ लोगो जो ईमान लाए हो सब्र और नमाज से मदद लो, अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है। और जो लोग अल्लाह की राह में मारे जाएं उन्हें मुर्दा न कहो, ऐसे लोग तो हकीकत में जिन्दा हैं, लेकिन तुम्हें उनकी जिन्दगी का शऊर (समझ) नहीं होता, और हम जरूर तुम्हें डर और खतरे, भुखमरी, जान व माल के नुकसान, और आमदनियों के घाटे में डालकर तुम्हारी आजमाइश करेंगे। इन हालात में जो लोग सब्र करे और जब कोई मुसीबत पड़े तो कहे 'हम अल्लाह ही के हैं और अल्लाह ही की तरफ पलट कर जाना है।' उन्हें खुशखबरी दे दो उन पर उनके रब की तरफ से बड़ी इनायात (देन, रहमत, इनाम) होगी, उसकी रहमत (मेहरबानी) उन पर साया करेगी और ऐसे ही लोग सच्चे रास्ते (राह ए रास्ते) पर हैं ।
बकर 2: 153-157
तुम इस हिदायत की पैरवी (पालन) किए जाओ जो तुम्हारी तरफ वही के जरिए भेजी जा रही है और सब्र करो यहां तक कि अल्लाह फैसला कर दे, और वही बेहतरीन फैसला करने वाला है।
यूनुस 10: 109
उनका हाल यह होता है कि अपने रब की रजा (खुशी) के लिए सब्र से काम लेते हैं, नमाज कायम करते हैं, हमारे दिए हुए माल में से खुले और छिपे खर्च करतें हैं और बुराई को भलाई से दफा (मिटाना) करते हैं, आखिरत का घर इन्हीं के लिए है।
रअद 13: 22
दीन (धर्म) के मामले मे कोई जोर जबरदस्ती नहीं है। सही बात गलत विचारों से अलग छांट कर रख दी गई है। अब जो कोई तागूत (जो अपने आपको बंदों का मालिक बना दे और अपनी चलाए) का इनकार करके अल्लाह पर ईमान ले आया उसने ऐसा मजबूत सहारा थाम लिया जो कभी टूटने वाला नहीं, और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला और जानने वाला है। जो लोग ईमान लाते हैं उनका हामी व मददगार अल्लाह है। और वह उनको अंधेरों में से रोशनी मे निकाल लाता है। और जो लोग कुफ्र (इनकार) की रविश इख्तियार करते हैं उनका हामी व मददगार तागूत है। और वे उन्हें रोशनी से अंधेरों की तरफ खींच ले जाते हैं। ये आग में जाने वाले लोग हैं जहां ये हमेशा रहेंगे।
बकर 2: 256-257
(ऐ मुसलमानो) ये लोग अल्लाह के सिवाय जिनको पुकारते हैं (हाजत रवां के रूप मे) उन्हें गालियां न दो, कहीं ऐसा न हो कि ये शिर्क से आगे बढ़कर जहालत (अज्ञानता) के कारण अल्लाह को गालियां देने लगे ।
अनआम 6: 108
इजाजत दे दी गई उन लोगों को जिनके खिलाफ जंग की जा रही है क्योंकि वे मजलूम (जिन पर जुल्म किया गया) हैं। और अल्लाह निश्चय ही उनकी मदद करने की ताकत रखता है। ये वह लोग हैं जो अपने घरों से नाहक निकाल दिए गए, सिर्फ इस कसूर पर कि वे कहते थे 'हमारा रब एक है' अगर अल्लाह लोगों को एक दूसरे के जरिए हटाता न रहता तो संतों के रहने की जगह (खानागाहें) और गिरजा और पूजाघर (माअबद) और मस्जिदें जिनमें अल्लाह का बहुत बार नाम लिया जाता है सब ढहा दी जाएं। अल्लाह जरूर उनकी मदद करेगा जो उसकी मदद करेंगे।
हज 22: 39-40
और जो कोई बदला ले वैसा ही जैसा उसके साथ किया गया और फिर उस पर ज्यादती भी की गई तो अल्लाह उसकी मदद जरूर करेगा ।
हज 22: 60
न तो अपना हाथ गर्दन से बाँध रखो और न उसे बिलकुल खुला छोड़ दो (सभी कुछ दे डालो) कि मलामत जदा आजिज (बेइज्जत और मोहताज) बन कर रह जाओ ।
बनी इस्राईल 17: 29
जो खर्च करते हैं तो न फिजूल (व्यर्थ) करते हैं न कंजूसी बल्कि उनका खर्च दोनों के बीच पर कायम रहता है।
फुरकान 25: 67
अपनी चाल में सहजता और संतुलन बनाए रख और अपनी आवाज धीमी रख। बेशक सब आवाजों से ज्यादा बुरी आवाज गधों की आवाज होती है।
लुकमान 31: 19
जिन लोगों ने भलाई का तरीका अपनाया उनके लिए भलाई है (बदले में) उससे भी ज्यादा है। और उनके चेहरों पर न तो कलौंस छाएगी और न जिल्लत (बेइज्जती)। वे ही जन्नत के अधिकारी हैं, वे उसमें हमेशा रहेंगे।
यूनुस 10: 26
अहसान कर जिस तरह अल्लाह ने तेरे साथ अहसान किया है।
कसस 28: 77
जो लोग अपना माल रात और दिन छिपे और खुले खर्च करते हैं उनका बदला उनके रब के पास है और न उन्हें कोई डर है और न कोई दुख होगा।
बकर 2: 274
उन्हें माफ कर देना चाहिए और दरगुजर करना चाहिए। क्या तुम यह नहीं चाहते कि अल्लाह तुम्हें माफ करे? और अल्लाह तो माफ करने वाला और रहीम (दयालु) है।
नूर 24: 22
ऐ नबी नरमी और दरगुजर का तरीका अपनाओ, भलाई का हुक्म देते रहो और अज्ञानियों (जाहिलों) से न उलझो ।
आराफ 7: 199
(ऐ पैगम्बर) यह अल्लाह की बड़ी रहमत है (दयालुता, रहमदिली ) कि तुम इन लोगों के लिए नरम मिजाज रहे हो, वरना अगर कहीं तुम कठोर मिजाज और सख्त दिल वाले होते तो ये सब लोग तुम्हारे पास से छंट (दूर चले) जाते, उनके कसूर माफ कर दो, इनके लिए मगफिरत (अल्लाह उन्हें कयामत के दिन माफ कर दे) की दुआ करो और मामलों में उनसे मशविरा कर लिया करो, और जब किसी मामले में राय बन जाए तो अल्लाह पर भरोसा करो, अल्लाह को वे लोग पसंद हैं जो उसी के भरोसे पर काम करें ।
आले इमरान 3: 159
और ऐ नबी! नेकी और बदी एक जैसी नहीं हैं, तुम बदी (बुराई) को उस नेकी (भलाई) से दूर करो जो बेहतरीन हो। तुम देखोगे कि तुम्हारे साथ जिसकी दुश्मनी थी वह जिगरी दोस्त बन गया है।
हा.मीम.सजदा 41: 34
ऐ नबी बुराई को उस तरीके से दूर करो (मिटाओ) जो सबसे अच्छा हो
मोमिनून 23: 96
रहमान के असली बन्दे वे हैं जो जमीन पर नरम चाल चलते हैं और जब जाहिल (अज्ञानी) उनके मुंह आए (बहस करने लगे) तो कह देते हैं 'तुम को सलाम' ।
फुरकान 25: 63
बकर 2: 153-157
तुम इस हिदायत की पैरवी (पालन) किए जाओ जो तुम्हारी तरफ वही के जरिए भेजी जा रही है और सब्र करो यहां तक कि अल्लाह फैसला कर दे, और वही बेहतरीन फैसला करने वाला है।
यूनुस 10: 109
उनका हाल यह होता है कि अपने रब की रजा (खुशी) के लिए सब्र से काम लेते हैं, नमाज कायम करते हैं, हमारे दिए हुए माल में से खुले और छिपे खर्च करतें हैं और बुराई को भलाई से दफा (मिटाना) करते हैं, आखिरत का घर इन्हीं के लिए है।
रअद 13: 22
दीन (धर्म) के मामले मे कोई जोर जबरदस्ती नहीं है। सही बात गलत विचारों से अलग छांट कर रख दी गई है। अब जो कोई तागूत (जो अपने आपको बंदों का मालिक बना दे और अपनी चलाए) का इनकार करके अल्लाह पर ईमान ले आया उसने ऐसा मजबूत सहारा थाम लिया जो कभी टूटने वाला नहीं, और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला और जानने वाला है। जो लोग ईमान लाते हैं उनका हामी व मददगार अल्लाह है। और वह उनको अंधेरों में से रोशनी मे निकाल लाता है। और जो लोग कुफ्र (इनकार) की रविश इख्तियार करते हैं उनका हामी व मददगार तागूत है। और वे उन्हें रोशनी से अंधेरों की तरफ खींच ले जाते हैं। ये आग में जाने वाले लोग हैं जहां ये हमेशा रहेंगे।
बकर 2: 256-257
(ऐ मुसलमानो) ये लोग अल्लाह के सिवाय जिनको पुकारते हैं (हाजत रवां के रूप मे) उन्हें गालियां न दो, कहीं ऐसा न हो कि ये शिर्क से आगे बढ़कर जहालत (अज्ञानता) के कारण अल्लाह को गालियां देने लगे ।
अनआम 6: 108
इजाजत दे दी गई उन लोगों को जिनके खिलाफ जंग की जा रही है क्योंकि वे मजलूम (जिन पर जुल्म किया गया) हैं। और अल्लाह निश्चय ही उनकी मदद करने की ताकत रखता है। ये वह लोग हैं जो अपने घरों से नाहक निकाल दिए गए, सिर्फ इस कसूर पर कि वे कहते थे 'हमारा रब एक है' अगर अल्लाह लोगों को एक दूसरे के जरिए हटाता न रहता तो संतों के रहने की जगह (खानागाहें) और गिरजा और पूजाघर (माअबद) और मस्जिदें जिनमें अल्लाह का बहुत बार नाम लिया जाता है सब ढहा दी जाएं। अल्लाह जरूर उनकी मदद करेगा जो उसकी मदद करेंगे।
हज 22: 39-40
और जो कोई बदला ले वैसा ही जैसा उसके साथ किया गया और फिर उस पर ज्यादती भी की गई तो अल्लाह उसकी मदद जरूर करेगा ।
हज 22: 60
न तो अपना हाथ गर्दन से बाँध रखो और न उसे बिलकुल खुला छोड़ दो (सभी कुछ दे डालो) कि मलामत जदा आजिज (बेइज्जत और मोहताज) बन कर रह जाओ ।
बनी इस्राईल 17: 29
जो खर्च करते हैं तो न फिजूल (व्यर्थ) करते हैं न कंजूसी बल्कि उनका खर्च दोनों के बीच पर कायम रहता है।
फुरकान 25: 67
अपनी चाल में सहजता और संतुलन बनाए रख और अपनी आवाज धीमी रख। बेशक सब आवाजों से ज्यादा बुरी आवाज गधों की आवाज होती है।
लुकमान 31: 19
जिन लोगों ने भलाई का तरीका अपनाया उनके लिए भलाई है (बदले में) उससे भी ज्यादा है। और उनके चेहरों पर न तो कलौंस छाएगी और न जिल्लत (बेइज्जती)। वे ही जन्नत के अधिकारी हैं, वे उसमें हमेशा रहेंगे।
यूनुस 10: 26
अहसान कर जिस तरह अल्लाह ने तेरे साथ अहसान किया है।
कसस 28: 77
जो लोग अपना माल रात और दिन छिपे और खुले खर्च करते हैं उनका बदला उनके रब के पास है और न उन्हें कोई डर है और न कोई दुख होगा।
बकर 2: 274
उन्हें माफ कर देना चाहिए और दरगुजर करना चाहिए। क्या तुम यह नहीं चाहते कि अल्लाह तुम्हें माफ करे? और अल्लाह तो माफ करने वाला और रहीम (दयालु) है।
नूर 24: 22
ऐ नबी नरमी और दरगुजर का तरीका अपनाओ, भलाई का हुक्म देते रहो और अज्ञानियों (जाहिलों) से न उलझो ।
आराफ 7: 199
(ऐ पैगम्बर) यह अल्लाह की बड़ी रहमत है (दयालुता, रहमदिली ) कि तुम इन लोगों के लिए नरम मिजाज रहे हो, वरना अगर कहीं तुम कठोर मिजाज और सख्त दिल वाले होते तो ये सब लोग तुम्हारे पास से छंट (दूर चले) जाते, उनके कसूर माफ कर दो, इनके लिए मगफिरत (अल्लाह उन्हें कयामत के दिन माफ कर दे) की दुआ करो और मामलों में उनसे मशविरा कर लिया करो, और जब किसी मामले में राय बन जाए तो अल्लाह पर भरोसा करो, अल्लाह को वे लोग पसंद हैं जो उसी के भरोसे पर काम करें ।
आले इमरान 3: 159
और ऐ नबी! नेकी और बदी एक जैसी नहीं हैं, तुम बदी (बुराई) को उस नेकी (भलाई) से दूर करो जो बेहतरीन हो। तुम देखोगे कि तुम्हारे साथ जिसकी दुश्मनी थी वह जिगरी दोस्त बन गया है।
हा.मीम.सजदा 41: 34
ऐ नबी बुराई को उस तरीके से दूर करो (मिटाओ) जो सबसे अच्छा हो
मोमिनून 23: 96
रहमान के असली बन्दे वे हैं जो जमीन पर नरम चाल चलते हैं और जब जाहिल (अज्ञानी) उनके मुंह आए (बहस करने लगे) तो कह देते हैं 'तुम को सलाम' ।
फुरकान 25: 63
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