26.9.11

इस्लामी समाज का मिशन

जमाने की कसम। 
इंसान दर हकीकत घाटे में  हैं। 
सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाएं
और नेक आमाल करते रहें और 
एक दूसरे को हक की नसीहत और 
सब्र की तलकीन करते रहें। 
  अस्र  103: 1-3
 

अल्लाह के नजदीक दीन सिर्फ  इस्लाम है ।
 आले इमरान  3: 19

हकीकत में तो मोमिन वे हैं जो अल्लाह और उसके रसूल (स.अ.व.) पर ईमान लाए फिर उन्होंने कोई शक न किया और अपनी जानों और मालों से अल्लाह की राह में जेहाद किया, वे ही सच्चे लोग हैं। 
                                                 हुजुरात  49: 15

सब मिलजुलकर अल्लाह की रस्सी को मजबूत पकड़ लो और तफरके (विवाद, विभेद) में न पड़ो। 
                                              आले इमरान  3: 103

और इसी तरह हमने मुसलमानों को एक ''उम्मते वस्त'' (एक ऐसा ऊंचे दर्जे का गिरोह जो इन्साफ और मध्यम मार्ग पर चले जिसका ताल्लुक सबके साथ एक से अधिकार और सच्चाई के साथ हो) बनाया है ताकि तुम दुनिया के लोगों पर गवाह रहो और रसूल तुम पर गवाह है। 
                                                         बकर  2: 143
अब दुनिया में वह बेहतरीन गिरोह तुम हो जिसे इन्सानों की हिदायत और सुधार के लिए मैदान में लाया गया है। तुम नेकी का हुक्म देते हो, बदी से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो। 
                                                      आले इमरान 3: 110
उसने (अल्लाह) ने तुम्हारे लिए दीन का वही तरीका मुकर्रर किया है जिसका हुक्म उसने नूह को दिया था और जिसे (ऐ मुहम्मद स.अ.व) अब तुम्हारी तरफ  हमने वही के जरिए से भेजा है और जिसकी हिदायत हम इब्राहीम और मूसा और ईसा को दे चुके हैं, इस ताकीद के साथ ही कायम करो इस दीन को और इसमें विभाजित न हो जाओ।  
                                                    शूरा 42: 13

हकीकत यह है कि अल्लाह किसी कौम के हाल नहीं बदलता जब तक वह खुद अपने आपको नहीं बदल देती। 
                                                   रअद- 13: 11

ब्याज (सूद)

मगर जो लोग सूद (ब्याज) खाते हैं उनका हाल उस आदमी का सा होता है जिसे शैतान ने छूकर बावला कर दिया हो। और इस हालत में उनके शामिल होने की वजह यह है कि वे कहते हैं  'तिजारत (व्यापार) भी तो ब्याज ही जैसी चीज है' हालांकि अल्लाह ने व्यापार को हलाल  किया है और ब्याज को हराम (अवैध, कानून के विरूद्ध) ठहराया है। इसलिए जिस आदमी को उसके रब की तरफ  से यह नसीहत पहुंचे और वह ब्याज खाने से बाज (रुक) आ जाए तो जो कुछ पहले खा चुका सो खा चुका उसका मामला अल्लाह के हवाले है, और जो इस हुक्म के बाद फिर यही कर्म किया तो वह जहन्नुमी है जहां वह हमेशा रहेगा। अल्लाह सूद (ब्याज) को घटाता है और दान (सदकात) को बढ़ाता है। ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, अल्लाह से डरो, और जो कुछ तुम्हारा ब्याज लोगों पर बाकी रह गया है, उसे छोड़ दो अगर सच में ईमान लाए हो। लेकिन अगर तुम ने ऐसा नहीं किया तो जान लो कि अल्लाह और उसके रसूल (स.अ.व.) की तरफ  से तुम्हारे खिलाफ  जंग का ऐलान है। और अगर तौबा (अल्लाह से माफी) कर लो तो अपना मूलधन लेने का तुम्हें अधिकार है। न तुम जुल्म करो न तुम पर जुल्म किया जाए। तुम्हारे कर्जदार तंगदस्त (चुकाने की क्षमता न हो) हो तो हाथ खुलने तक उसे मोहलत दो और जो सदका (दान) कर दो तो यह तुम्हारे लिए ज्यादा अच्छा है, अगर तुम समझो। 
                                                          बकर 2: 275-280
 खयानत
और एक दूसरे का माल ना हक न खाया करो, ना हाकिमों (अधिकारियों) को रिश्वत पहुंचा कर किसी का कुछ माल जुल्म व सितम से हड़प लिया करो।
                                                      बकर 2: 188

अगर तुम में से कोई व्यक्ति दूसरे पर भरोसा करके उसके साथ मामला करे तो जिस पर भरोसा किया गया है उसे चाहिए कि अमानत अदा करे और अपने रब से डरे और गवाही (शहादत) हरगिज न छिपाओ। 
                                                     बकर  2: 283
और जो कोई खयानत (उसके पास छोड़ा हुआ माल या वस्तु हड़प ले) करे तो वह अपनी खयानत समेत कयामत के दिन हाजिर हो जाएगा। हर व्यक्ति को उसकी कमाई का पूरा बदला मिल जाएगा। 
                                               आले इमरान 3: 161
 

25.9.11

नाप तोल में धोखाधड़ी

तबाही है डंडी मारने वालों के लिए जिनका हाल यह है कि जब लोगों से लेते हैं तो पूरा-पूरा लेते हैं, और जब उनको नाप कर या तौल कर देते हैं तो उन्हें कम देते हैं।
   मुतफ्फिफीन  83: 1-3


और नाप तोल में इंसाफ  करो। जब बात कहो तो इंसाफ की कहो भले मामला रिश्तेदार ही का क्यों न हो ।
            अनआम  6: 153



हमने अपने रसूलों को साफ  साफ  निशानियों और हिदायत (मार्गदर्शन) के साथ भेजा और उनके साथ किताब और मिजान (तराजू, नाप तोल और इंसाफ  का स्तर, सच और झूठ का वह मियार जो तोल तोल कर बता देता है कि मानव जीवन व्यवस्था इंसाफ पर स्थापित रहे।) उतारा ताकि लोग इंसाफ  पर डटे (कायम) रहें ।
                                                              हदीद 57: 25
 
 जमाखोरी और मुनाफाखोरी

बड़ी तबाही है उस आदमी के लिए जो लोगों पर ताने और उनकी बुराइयां करता है। जिसने माल जमा किया और उसे गिन गिन कर रखा। वह समझता है कि उसका माल हमेशा उसके पास रहेगा। हरगिज नहीं वह आदमी तो चकनाचूर करे देने वाली जगह में फेंक दिया जाएगा। और तुम क्या जानो चकनाचूर कर देने वाली जगह?  अल्लाह की आग खूब भड़काई हुई जो दिलों तक पहुंचेगी । 
                                          हु-म-जह 104: 1-7
और जो लोग सोने चांदी का खजाना रखते हैं। और अल्लाह की राह (रास्ते) में खर्च नहीं करते उन्हें दर्दनाक अजाब की खबर पहुंचा दीजिए। 
                                             तौबा 9: 34
चोरी की सजा
और चोर, औरत हो या मर्द दोनों के हाथ काट दो यह उनकी कमाई का बदला है। और अल्लाह की तरफ  से सबक देने वाली सख्त सजा है। 
      माइदा 5: 38

वही है जिसने तुमको जमीन का खलीफा बना दिया और  तुम में से कुछ लोगों के दर्जे कुछ लोगों की तुलना में ऊंचे रखे ताकि जो कुछ उसने तुमको दिया है उसमें तुम्हारी आजमाइश (परीक्षा) करे। 
                                                 अनआम 6: 165

और एक दूसरे का माल ना हक न खाया करो, ना हाकिमों (अधिकारियों) को रिश्वत पहुंचा कर किसी का कुछ माल जुल्म व सितम से हड़प लिया करो।
                                                   बकर 2: 188
अगर तुम में से कोई व्यक्ति दूसरे पर भरोसा करके उसके साथ मामला करे तो जिस पर भरोसा किया गया है उसे चाहिए कि अमानत अदा करे और अपने रब से डरे और गवाही (शहादत) हरगिज न छिपाओ। 
                                            बकर  2: 283
 और जो कोई खयानत (उसके पास छोड़ा हुआ माल या वस्तु हड़प ले) करे तो वह अपनी खयानत समेत कयामत के दिन हाजिर हो जाएगा। हर व्यक्ति को उसकी कमाई का पूरा बदला मिल जाएगा। 
                                         आले इमरान 3: 161

आर्थिक जीवन

ऐ लोगो जो ईमान लाए हो जब पुकारा जाए नमाज के लिए जुमे के दिन तो अल्लाह के जिक्र की तरफ  दौड़ो और खरीदना बेचना छोड़ दो, यह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम जानो। 
                     जुमुआ 62: 9

उनमें से ऐसे लोग सुबह व शाम उसकी तसबीह करते हैं जिन्हें तिजारत और खरीदना-बेचना अल्लाह की याद से और अकामते नमाज व अदाए जकात से गाफिल नहीं कर देता। 
                                     नूर 24: 37
 हमने तुम्हें जमीन पर सत्ता (इख्तियारात) के साथ बसाया है और तुम्हारे लिए जीने का सामान दिया है ।
                            आराफ  7: 10

फिजूलखर्ची
फिजूलखर्ची न करो फिजूलखर्च लोग शैतान के भाई हैं और शैतान अपने रब का नाशुक्रा है। 
                                                       बनी इस्राईल  17: 27

(लोगो!) तुम को (माल की) बहुत सी तलब ने गाफिल कर दिया है। यहां तक कि तुम कब्रों में जा पहुंचे। देखो तुम्हें बहुत जल्द मालूम हो जाएगा। 
                                                         तकासूर  102: 1-3

आदमी का उस माल में एक हिस्सा है जो मां बाप और रिश्तेदारों ने छोड़ा है।
                                                                           निसा 4: 7
                   (उत्तराधिकारी के रूप में मिलने वाले हिस्से का विस्तृत वर्णन सूरा निसा में पढ़ें)

ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! मैं बताऊं तुम्हे तिजारत जो तुम्हें बड़े अजाब से बचा ले? ईमान लाओ अल्लाह और उसके रसूल पर और कोशिश करो अल्लाह की राह में अपने मालों से और अपनी जानों से। यही तुम्हारे लिए उत्तम है यदि तुम जानो। 
                                                                        सफ्फ  61: 10-11
और उनके मालो में मांगने वालों और वंचित गरीबों का हक होता है।
                                                                                              जारियात  51: 19

15.9.11

मां बाप के साथ सुलूक


और यह हकीकत है कि हमने इन्सान को अपने मां बाप के हक पहचानने की खुद ताकीद की है। उसकी मां ने निढ़ाल (दु:ख) पर निढ़ाल होकर उसे पेट में रखा। दो साल उसके दूध छूटने में लगे (इसीलिए हमने उसको नसीहत की) कि मेरा शुक्र अदा कर और अपने मां बाप का शुक्र बजा ला। आखिर तुम्हें मेरी ही तरफ  पलटना है।
                          लुकमान 31: 14

तेरे रब ने फैसला कर दिया है कि तुम लोग किसी की इबादत न करो मगर सिर्फ उसकी (अल्लाह की)। मां बाप के साथ नेक सुलूक करो। अगर तुम्हारे पास उनमें से कोई एक या दोनों बूढ़े होकर रहें तो उन्हें उफ्  तक न कहो। न उन्हें झिड़क कर जवाब दो, बल्कि उनसे एहतराम (आदर) के साथ बात करो और नरमी व रहम (दया) के साथ उनके सामने झुक कर रहो और यह दुआ किया करो 'परवरदिगार इन पर रहम फरमा जिस तरह इन्होंने रहमत व शफक्कत (लाड़ प्यार) के साथ मुझे बचपन में पाला था'।
                                                बनी इस्राईल 17: 23-24

हमने (अल्लाह ने) इन्सान को हिदायत (ताकीद) की वह अपने मां बाप के साथ नेक सुलूक (व्यवहार) करे। उसकी मां ने उसे (पेट में) तकलीफ  के साथ उठाए रखा, और उसे जना भी तकलीफ  के साथ। और उसके गर्भ की अवस्था में रहने और दूध छुड़ाने में तीस महीने लग गए। यहां तक वह पूरी ताकत को पहुंचा तो चालीस साल का हो गया तो उसने कहा:
'ऐ मेरे रब मुझे तौफीक (प्रेरणा) दे कि मैं तेरी उन नेमतों का शुक्र अदा करूं जो तूने मुझे और मेरे मां बाप को अता फरमाई (दी), और ऐसा नेक अमल करूं जिससे तू राजी हो और मेरी औलाद को भी नेक बनाकर मुझे सुख दे। मैं तेरे हुजूर तौबा करता हूं और ताबे फरमान (मुस्लिम, आज्ञाकारी) बन्दो में से हूं' इस तरह के लोगों से हम उनके बेहतरीन आमाल (कर्म) को कुबूल करते हैं और उन्हें बुराइयों से दर गुजर कर जाते हैं।
                                                    अहकाफ  46: 15-16

लोग आपसे पूछते हैं  'हम क्या खर्च करें ?' उनसे कह दीजिए तुम जो माल भी खर्च करो, पस इसके लिए पहले हकदार मां बाप हैं।
                                                    बकर  2: 215

परदा (हिजाब)


अपने घरों में चैन से बैठी रहो और जाहिलियत की सी सज धज दिखाती न फिरो, नमाज कायम करो, जकात दो, अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करो।
                                     अहजाब 33: 33

और अपने पांव जमीन पर इस तरह मारती हुई न चला करो कि उनकी छिपी हुई जीनत लोगों को मालूम हो जाए और अपने सीनों पर दुपट्टे डाले रहो और अपने बनाव सिंगार को जाहिर न होने दो।                                                  
                                        नूर 24: 31


और अपने सतर की हिफाजत करो और मोमिन मर्दों को हिदायत की जाए कि अपनी निगाह नीची रखें।
                                    नूर  24: 30

ऐ नबी! अपनी बीवियों, बेटियों और ईमान वाली औरतों से कह दो कि (बाहर निकलें तो) अपने ऊपर चादरों के पल्लू लटका लिया करें यह ज्यादा मुनासिब तरीका है ताकि वे पहचान ली जाएं और न सताई जाएं, अल्लाह गफूरुर रहीम (माफ करने वाला, दयावान) है।
                                 अहजाब 33: 59


और अपनी शर्मगाहों की हिफाजत करें यह उनके लिए ज्यादा पाकबाजी की बात है जो कुछ ये करते हैं अल्लाह उससे पूरी तरह वाकिफ  है।
                                                       नूर   24: 30


और मोमिन औरतों से कहिए कि अपनी निगाहें नीची रखें।
                                                         नूर   24: 31


14.9.11

शादी


तुम में से जो मर्द और औरत बगैर शादी के हों उनका निकाह कर दो और अपने गुलाम व लोंडियां जो नेक हों उनका निकाह कर दो। अगर वे गरीब होंगे तो अल्लाह अपने फजल से उनको मालदार कर देगा और अल्लाह बड़ी समायी वाला और इल्म वाला है।
                             नूर 24: 32

और अल्लाह की निशानियों में एक अहम निशानी यह है कि उसने तुम्हारी ही सहजाती  से तुम्हारे लिए जोड़े पैदा किए ताकि तुम उनके पास सुकून (शांति) पा सको और तुम्हारे बीच मोहब्बत व रहमत पैदा कर दी ।
                               रूम 30: 21

(मुसलमानो!) तुम मुशरिक (बहुदेववादी) औरतों से हरगिज निकाह न करो जब तक कि वे ईमान न ले आएं।
                                                                             बकर 2: 221

जो तुम्हें पसन्द हो, दो-दो या तीन-तीन या चार-चार से शादी कर लो। किन्तु अगर तुम्हें डर हो कि तुम उनके साथ इंसाफ  न कर सकोगे तो फिर एक ही बीवी रखो ।
                                                                        निसा 4: 3 
 
औरतों को भी भले तरीके पर वैसे ही अधिकार हैं जैसे मर्दों के अधिकार उन पर हैं।
                                                                   बकर 2: 228

और मर्दों को औरतों पर एक दरजा फजीलत (ज्यादा) हासिल है। मर्द औरतों के संरक्षक और निगरां है, क्योंकि अल्लाह ने उनसे कुछ को कुछ के मुकाबले में आगे रखा है।
                                                               निसा 4: 34

औरतों के साथ नेक सलूक की जिन्दगी गुजारो। फिर अगर वे तुम्हें (किसी वजह से) नापसन्द हों तो हो सकता है कि एक चीज तुम्हें पसन्द न हो, मगर अल्लाह ने उसमें (तुम्हारे लिए) बहुत कुछ भलाई रख दी हो।
                                                              निसा 4: 19


पस जो नेक रविश रखने वाली औरतें हैं वे मर्दों की सेवा करने वाली होती हैं। और वे मर्दों के पीछे (गैर हाजरी में) अल्लाह की निगरानी में उनके अधिकारों और अमानतों की हिफाजत करती हैं।
                                                         निसा 4: 34

ताल्लुकात


सब मिलजुल कर अल्लाह की रस्सी को मजबूत पकड़ लो और तफरके (अलग अलग फिरकों में बंट जाना) में न पड़ो।
                                              आले इमरान 3: 103
       (अल्लाह की रस्सी का अर्थ कुरआन मजीद) 

मोमिन तो एक दूसरे के भाई हैं  इसलिए अपने भाइयों के दरमियान ताल्लुकात (संबंधों) को ठीक करो और अल्लाह से डरो। उम्मीद है कि तुम पर रहम किया जाए।
                                       हुजुरात 49: 9 

जब तुम्हारे पास वे लोग आएं जो हमारी आयात पर ईमान लाते है (यानी मुसलमान) तो उनसे कहो- ''तुम पर सलामती है''। (सलामु अलेयकुम)
                                       अनआम 6: 54 

जो काम नेकी और परहेजगारी (अल्लाह के डर के कारण) के हैं उनमें सबको सहयोग दो और गुनाह (पाप) और हक मारने (अत्याचार व ज्यादती ) के काम मे किसी का भी सहयोग न करो।
                                    माइदा 5: 2 
बेटा। नमाज कायम कर, नेकी (भलाई) का हुक्म दे, बदी (बुराई) से मना कर, और जो मुसीबत भी पड़े उस पर सब्र कर।
                                                                                          लुकमान 31: 17 

और यह है कि लोगों से भली बात कहो और नमाज कायम करो, जकात दो।
                                                                                          बकर 2: 83 

ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! न मर्द दूसरे मर्दों का मजाक उड़ाएं। हो सकता है कि वे उनसे बेहतर (अच्छे) हों, और न औरतें दूसरी औरतों का मजाक उड़ाएं, हो सकता है कि वे उनसे बेहतर हों, एक दूसरे को ताने न दो, और न एक दूसरे को बुरे नाम से पुकारो। ईमान लाने के बाद नियम तोडऩे वालों में शुमार होना बहुत बुरी बात है।
                                                                                        हुजुरात 49: 11

छोड़ो उन लोगों को, जिन्होंने अपने धर्म (दीन) को खेल और तमाशा बना रखा है और जिन्हें दुनिया की जिन्दगी ने फरेब (धोखे) में डाल रखा है। हाँ मगर यह कुरआन सुना कर नसीहत की, कहीं ऐसा ना हो कि वह आदमी अपनी करतूतों के कारण तबाही में पड़ जाए कि अल्लाह से बचने वाला कोई दोस्त (हामी, मददगार,) और सिफरिश करने वाला न हो।
                                                                                    अनआम 6: 70 

अगर मोमिनों में से दो गिरोह आपस मे लड़ पड़े तो उनके बीच सुलह करा दो। फिर अगर उनमें से एक गिरोह दूसरे गिरोह पर ज्यादती करे तो ज्यादती करने वालों से लड़ो यहाँ तक कि वे अल्लाह के हुक्म की तरफ  पलट आएं तो उनके बीच न्याय के (इंसाफ) साथ सुलह करा दो और इंसाफ  करो कि अल्लाह इंसाफ  करने वालों को पसंद करता है।
                                                                            हुजुरात 49: 9 

और माफी मांगो (अल्लाह से) अपने कसूर के लिए भी और मोमिन मर्द और मोमिन औरतों के लिए भी ।
                                                                              मुहम्मद 47: 19

और जब तुम्हारे पास ऐसे लोग आया करें जो हमारी आयतों पर ईमान लाए हैं तो अस्सलामु अलेयकुम कहा करो ।
                                                                            अनआम 6: 54 
जब कोई तुमसे सलाम करे तो तुम उसको उससे बेहतर तरीके से जवाब दो।
                                                                          निसा 4: 86 

और लोगों से भली बात कहो।
                                       बकर 2: 83 

और नेकी का हुक्म दो और बुराई से रोको।
                                     लुकमान 31: 17

और उस आदमी से ज्यादा भली बात कहने वाला और कौन होगा जो अल्लाह की तरफ बुलाए और नेक काम करे और कहे- मैं मुसलमान हूँ 
                                                     हा मीम सजदा 41: 33

5.9.11

सब्र

ऐ लोगो जो ईमान लाए हो सब्र और नमाज से मदद लो, अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है। और जो लोग अल्लाह की राह में मारे जाएं उन्हें मुर्दा न कहो, ऐसे लोग तो हकीकत में जिन्दा हैं, लेकिन तुम्हें उनकी जिन्दगी का शऊर (समझ) नहीं होता,  और हम जरूर तुम्हें डर और खतरे, भुखमरी, जान व माल के नुकसान, और आमदनियों के घाटे में डालकर तुम्हारी आजमाइश करेंगे। इन हालात में जो लोग सब्र करे और जब कोई मुसीबत पड़े तो कहे 'हम अल्लाह ही के हैं और अल्लाह ही की तरफ  पलट कर जाना है।' उन्हें खुशखबरी दे दो उन पर उनके रब की तरफ  से बड़ी इनायात (देन, रहमत, इनाम) होगी, उसकी रहमत (मेहरबानी) उन पर साया करेगी  और ऐसे ही लोग सच्चे रास्ते (राह ए रास्ते) पर हैं ।
                                                                                                 बकर 2: 153-157

तुम इस हिदायत की पैरवी (पालन) किए जाओ जो तुम्हारी तरफ  वही के जरिए भेजी जा रही है और सब्र करो यहां तक कि अल्लाह फैसला कर दे, और वही बेहतरीन फैसला करने वाला है।
                                                                                               यूनुस 10: 109

उनका हाल यह होता है कि अपने रब की रजा (खुशी) के लिए सब्र से काम लेते हैं, नमाज कायम करते हैं, हमारे दिए हुए माल में से खुले और छिपे खर्च करतें हैं और बुराई को भलाई से दफा (मिटाना) करते हैं, आखिरत का घर इन्हीं के लिए है।
                                                                                              रअद 13: 22
दीन (धर्म) के मामले मे कोई जोर जबरदस्ती नहीं है। सही बात गलत विचारों से अलग छांट कर रख दी गई है। अब जो कोई तागूत (जो अपने आपको बंदों का मालिक बना दे और अपनी चलाए) का इनकार करके अल्लाह पर ईमान ले आया उसने ऐसा मजबूत सहारा थाम लिया जो कभी टूटने वाला नहीं, और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला और जानने वाला है। जो लोग ईमान लाते हैं उनका हामी व मददगार अल्लाह है। और वह उनको अंधेरों में से रोशनी मे निकाल लाता है। और जो लोग कुफ्र (इनकार) की रविश इख्तियार करते हैं उनका हामी व मददगार तागूत है। और वे उन्हें रोशनी से अंधेरों की तरफ खींच ले जाते हैं। ये आग में जाने वाले लोग हैं जहां ये हमेशा रहेंगे।
                                                                                                   बकर 2: 256-257
(ऐ मुसलमानो) ये लोग अल्लाह के सिवाय जिनको पुकारते हैं (हाजत रवां के रूप मे) उन्हें गालियां न दो, कहीं ऐसा न हो कि ये शिर्क से आगे बढ़कर  जहालत (अज्ञानता) के कारण अल्लाह को गालियां देने लगे ।
                                                                                                 अनआम 6: 108

इजाजत दे दी गई उन लोगों को जिनके खिलाफ  जंग की जा रही है क्योंकि वे मजलूम (जिन पर जुल्म किया गया) हैं। और अल्लाह निश्चय ही उनकी मदद करने की ताकत रखता है। ये वह लोग हैं जो अपने घरों से नाहक निकाल दिए गए, सिर्फ  इस कसूर पर कि वे कहते थे  'हमारा रब एक है' अगर अल्लाह लोगों को एक दूसरे के जरिए हटाता न रहता तो संतों के रहने की जगह (खानागाहें) और गिरजा और पूजाघर (माअबद) और मस्जिदें जिनमें अल्लाह का बहुत बार नाम लिया जाता है सब ढहा दी जाएं। अल्लाह जरूर उनकी मदद करेगा जो उसकी मदद करेंगे।
                                                                                               हज 22: 39-40

और जो कोई बदला ले वैसा ही जैसा उसके साथ किया गया और फिर उस पर ज्यादती भी की गई तो अल्लाह उसकी मदद जरूर करेगा ।
                                                                                              हज 22: 60

न तो अपना हाथ गर्दन से बाँध रखो और न उसे बिलकुल खुला छोड़ दो (सभी कुछ दे डालो) कि मलामत जदा आजिज (बेइज्जत और मोहताज) बन कर रह जाओ ।
                                                                                             बनी इस्राईल 17: 29

जो खर्च करते हैं तो न फिजूल (व्यर्थ) करते हैं न कंजूसी बल्कि उनका खर्च दोनों के बीच पर कायम रहता है।
                                                                                            फुरकान 25: 67

अपनी चाल में सहजता और संतुलन बनाए रख और अपनी आवाज धीमी रख। बेशक सब आवाजों से ज्यादा बुरी आवाज गधों की आवाज होती है।
                                                                                          लुकमान 31: 19

 जिन लोगों ने भलाई का तरीका अपनाया उनके लिए भलाई है (बदले में) उससे भी ज्यादा है। और उनके चेहरों पर न तो कलौंस छाएगी और न जिल्लत (बेइज्जती)। वे ही जन्नत के अधिकारी हैं, वे उसमें हमेशा रहेंगे।
                                                                                          यूनुस 10: 26

अहसान कर जिस तरह अल्लाह ने तेरे साथ अहसान किया है।
                                                                                     कसस 28: 77

जो लोग अपना माल रात और दिन छिपे और खुले खर्च करते हैं उनका बदला उनके रब के पास है और न उन्हें कोई डर है और न कोई दुख होगा।
                                                                                         बकर 2: 274

उन्हें माफ  कर देना चाहिए और दरगुजर करना चाहिए। क्या तुम यह नहीं चाहते कि अल्लाह तुम्हें माफ  करे? और अल्लाह तो माफ  करने वाला और रहीम (दयालु) है।
                                                                                       नूर 24: 22

ऐ नबी नरमी और दरगुजर का तरीका अपनाओ, भलाई का हुक्म देते रहो और अज्ञानियों (जाहिलों) से न उलझो 
                                                                                       आराफ  7: 199

(ऐ पैगम्बर) यह अल्लाह की बड़ी रहमत है (दयालुता, रहमदिली ) कि तुम इन लोगों के लिए नरम मिजाज रहे हो, वरना अगर कहीं तुम कठोर मिजाज और सख्त दिल वाले होते तो ये सब लोग तुम्हारे पास से छंट (दूर चले) जाते, उनके कसूर माफ  कर दो, इनके लिए मगफिरत (अल्लाह उन्हें कयामत के दिन माफ  कर दे) की दुआ करो और मामलों में उनसे मशविरा कर लिया करो, और जब किसी मामले में राय बन जाए तो अल्लाह पर भरोसा करो, अल्लाह को वे लोग पसंद हैं जो उसी के भरोसे पर काम करें ।
                                                                         आले इमरान 3: 159

और ऐ नबी! नेकी और बदी एक जैसी नहीं हैं, तुम बदी (बुराई) को उस नेकी (भलाई) से दूर करो जो बेहतरीन हो। तुम देखोगे कि तुम्हारे साथ जिसकी दुश्मनी थी वह जिगरी दोस्त बन गया है।
                                                                           हा.मीम.सजदा 41: 34
ऐ नबी बुराई को उस तरीके से दूर करो (मिटाओ) जो सबसे अच्छा हो
                                                                            मोमिनून 23: 96

रहमान के असली बन्दे वे हैं जो जमीन पर नरम चाल चलते हैं और जब जाहिल (अज्ञानी) उनके मुंह आए (बहस करने लगे) तो कह देते हैं  'तुम को सलाम' ।
                                                                            फुरकान 25: 63

29.8.11

नैतिक मूल्य (अखलाकी कद्रें)

नेकी यह नहीं है कि तुमने अपने चेहरे पूरब की तरफ  कर लिए या पश्चिम की तरफ, बल्कि नेकी यह है कि आदमी अल्लाह को और अन्तिम दिन (कयामत) और फरिश्तों को और अल्लाह की उतारी हुई किताब और उसके पैगम्बरों को दिल से माने, और अल्लाह की मोहब्बत में अपना दिल पसंद माल रिश्तेदारों, और यतीमों (अनाथ) पर, मिस्कीनों और मुसाफिरों पर, मदद के लिए हाथ फैलाने वालों पर, और गुलामों की रिहाई पर खर्च करें। नमाज कायम करें और जकात दें। और नेक वे लोग हैं जब वादा करें उसे निभाएं और तंगी व मुसीबत के समय में और सच और झूठ  की लड़ाई में सब्र करें। यह हैं सच्चे लोग और यही अल्लाह से डरने वाले (परहेजगार) हैं।
                                                                                              बकर 2: 177

तुम नेकी को नहीं पहुंच सकते जब तक कि अपनी वह चीजें (अल्लाह की राह में ) खर्च न करो जिन्हें तुम प्यार करते हो और जो कुछ तुम खर्च करोगे अल्लाह उससे बेखबर न होगा।
      आले इमरान 3: 92

लोगो! हमने तुमको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया है फिर तुम्हारी कौमें और बिरादरियां बना दी ताकि तुम एक दूसरे को पहचानो । हकीकत में अल्लाह के नजदीक तुम में सबसे ज्यादा इज्जत वाला वह है जो तुम्हारे अन्दर सबसे ज्यादा परहेजगार (अल्लाह से डरने वाला) है।
                                                                        हुजुरात 49: 13

फिर तुम्हारा क्या खयाल है कि बेहतर इंसान वह है जिसने अपनी इमारत (भवन) की बुनियाद (आधार) अल्लाह के डर और उसकी खुशी की चाहत पर रखी हो या जिसने अपनी इमारत की बुनियाद एक घाटी की कोख के किनारे पर उठायी और वह उसे लेकर सीधे जहन्नुम (नर्क) की आग मे जा गिरी ? ऐसे जालिम लोगों को अल्लाह कभी सीधी राह (रास्ता) नहीं दिखाता। यह इमारत जो उन्होंने बनाई है, हमेशा उनके दिलों में बे यकीनी की जड़ बनी रहेगी (जिसके निकलने की अब कोई सूरत नहीं है) इसलिए की उनके दिल ही पारा पारा (टुकड़े, टुकड़े) हो जाएं, और अल्लाह जानने वाला और हकीम व दाना है ।
                                                                         तौबा 9: 109-110

उस शख्स की बात से अच्छी बात किसकी होगी जिसने अल्लाह की तरफ  बुलाया और नेक काम किया और कहा कि मैं मुसलमान हँू । और ऐ नबी (स.अ.व.) नेकी और बदी (बुराई) एक से नहीं है, तुम बदी (बुराई) को उस नेकी से मिटाओ जो बेहतरीन हो, तुम देखोगे तुम्हारे साथ जिसकी दुश्मनी थी वह जिगरी दोस्त बन गया। यह गुण (सिफ्त) नसीब नहीं होता मगर उन लोगों को जो सब्र करते हैं, और यह मुकाम (स्थान) नहीं मिलता मगर उन लोगों को जो बड़े  भाग्यशाली होते हैं। और शैतान की तरफ  से कोई उकसाहट महसूस करो तो अल्लाह की पनाह माँग लो, वह सब कुछ जानता है ।
                                                                                 हमीम सजदा 41: 33-36

ऐ लोगो ! जो ईमान लाए हो अल्लाह से डरो और सच्चे लोगों का साथ दो ।
                                                                                  तौबा 9: 119

ऐ लोगो जो ईमान ले आए हो इंसाफ  का झंडा  उठाने वाले और अल्लाह के वास्ते गवाह बनो अगरचे तुम्हारे इंसाफ और तुम्हारी गवाही की चोट खुद तुम्हारे ऊपर या तुम्हारे माता पिता और रिश्तेदारों पर ही क्यों न पड़ती हो। मामला पेश करने वाला (मुद्दई) चाहे मालदार हो या गरीब, अल्लाह तुम से ज्यादा उनका खैरख्वाह है इसलिए अपने मन की पैरवी में इंसाफ  से बाज न रहो (यानी इंसाफ  पर रहो) अगर तुमने लगी लिपटी बात कही या सच्चाई से पहलू बचाया, तो जान लो जो कुछ तुम करते हो अल्लाह को उसकी खबर है।
                                                                                          निसा  4: 135

अल्लाह अदल (इंसाफ , न्याय) और सिलारहमी (रिश्तेदारों के मामले मे अहसान की खास सूरत जिसमें खुशहाल लोगों की दौलत में औलाद और माँ बाप के अलावा रिश्तेदारों का भी हक है और उनकी मदद देने के आदेश) का हुक्म देता है और बुराई (बदी) और बेशर्मी और जुल्म और ज्यादती से मना करता है। वह तुम्हें नसीहत करता है ताकि तुम सबक लो। अल्लाह के साथ किए गए वादे को पूरा करो जबकि तुमने उससे कोई अहद बांधा हो, और अपनी कसमें पक्की करने के बाद तोड़ न डालो जबकि तुम अल्लाह को गवाह बना चुके हो। अल्लाह तुम्हारे सब कामों की खबर रखता है
                                                                            नहल 16: 90 - 91

और नाप तोल में इंसाफ  करो। जब बात कहो तो इंसाफ की कहो भले मामला रिश्तेदार ही का क्यों न हो ।
                                                                           अनआम  6: 153

नेक लोग वे हैं जो अहद (वादा, करार) करें तो उसे पूरा करें ।
                                                                           बनी इस्राईल 17: 34

मुसलमानो। अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि अमानतें (माल, सामान, स्थान, बातें आदि) अमानत के मालिक को सौंप दो और जब लोगों के दरमियान फैसला करो तो इंसाफ  के साथ फैसला करो। अल्लाह तुमको बहुत ही उम्दा नसीहत करता है।
                                                                                निसा 4: 58

ऐ लोगो जो ईमान लाए हो जब किसी तय मुद्दत (समय) के लिए आपस में कर्ज का लेन देन करो तो उसे लिख लिया करो। दोनों पक्षों के दरमियान एक आदमी इंसाफ  के साथ दस्तावेज लिखे, कर्ज लेने वाला लिखवाए। और जिसे अल्लाह ने लिखने पढऩे की काबलियत दी हो उसे लिखने से इंकार नहीं करना चाहिए। वह लिखे और लिखवाए वह आदमी जो उधार ले रहा है। और उसे (लिखने वाले को) अपने रब से डरना चाहिए कि जो मामला तय हुआ हो उसमें कोई कमी बेशी न करे । लेकिन अगर उधार लेने वाला खुद नादान (अज्ञानी) हो या बूढा हो, या लिखवा न सकता हो तो उसका प्रतिनिधि इंसाफ  के साथ इमला (दस्तावेज की शर्तें आदि) कराए। फिर अपने मर्दों में से दो गवाह करवालो। हां जो तिजारती लेनदेन आमने-सामने चुका कर आपस में किया जाता हो उसको न लिखा जाए तो कोई हर्ज नहीं।
                                                                                     बकर 2: 282

(मोमिन) अपनी अमानतों (नकद सामान जो किसी के पास हिफाजत के लिए रख दिया हो) और अपने अहद व पैमा (वादे, करार, समझौता) का पास रखते हैं (निभाते हैं) और अपनी नमाजों की मुहाफिजत (निगहबानी यानी नमाज समय पर आदाब व उसके सब भाग लगन के साथ) करते हैं। यही लोग वारिस (उत्तराधिकारी) बनेगें फिरदौस के (स्वर्ग का सबसे अच्छा स्थान) और उसमें हमेशा रहेंगे।
                                                                                         मोमिनून 23: 8-11

हमने अपने रसूलों को साफ  साफ  निशानियों और हिदायत (मार्गदर्शन) के साथ भेजा और उनके साथ किताब और मिजान (तराजू, नाप तोल और इंसाफ  का स्तर, सच और झूठ का वह मियार जो तोल तोल कर बता देता है कि मानव जीवन व्यवस्था इंसाफ पर स्थापित रहे।) उतारा ताकि लोग इंसाफ  पर डटे (कायम) रहें ।
                                                                                           हदीद 57: 25

और जब लोगों के बीच में फैसला करो तो इंसाफ  के साथ फैसला करो।
                                                                                           निसा 4: 58

और नाप तोल में पूरा इंसाफ  करो, हम हर आदमी पर जिम्मेदारी का उतना ही बोझ रखते हैं जितनी उसमें ताकत है, और जब बात कहो तो इंसाफ  की कहो भले ही मामला रिश्तेदारों ही का क्यो न हो ।  
                                                                                       अनआम 6: 152

28.8.11

हज


बेशक सबसे पहली इबादतगाह जो इंसानों के लिए बनाई गई वही है जो मक्का में है। इसको खैरो बरकत दी गई थी और तमाम दुनिया वालों के लिए मार्गदर्शन (हिदायत) के लिए केन्द्र बनाया गया था। इसमें खुली हुई निशानियां हैं। इब्राहीम का इबादत का स्थान है और इसका हाल यह है कि जो इसमें दाखिल हुआ वह (मरते दम तक अल्लाह की फरमाबरदारी और वफादारी पर कायम रहा)। लोगों पर अल्लाह का यह हक है कि जो इस घर तक पहुँचने की ताकत रखता हो तो उस घर (काबा) का हज करे, और जो कोई इस हुक्म की पैरवी से इन्कार करे तो उसे मालूम होना चाहिए कि अल्लाह तमाम दुनिया वालों से बेनियाज है।
                              आले इमरान 3: 96-97

हज के चंद महीने हैं जो सबको मालूम है।
                                             बकर 2: 197

और सिर के बाल उस समय तक न मुण्डवाओ जब तक कुरबानी का जानवर अपने ठिकाने पर न पहुँच जाए ।
                                                                            बकर 2: 196

इसमें कोई हर्ज नहीं कि तुम हज के साथ-साथ अपने परवरदिगार का फजल तलाश करो।
                                                                             बकर 2: 198

और चाहिए कि पुराने घर (काबा) का तवाफ (सात बार परिक्रमा) करे ।
                                                                         हज 22: 29

फिर जब अराफात (जगह का नाम) से लौटो तो मुजलदफा के पास ठहर कर अल्लाह को याद करो।
                                                                       बकर 2: 198

इसमें शक नहीं कि सफा व मरवा (पहाडिय़ों के नाम) अल्लाह की निशानियों में से हैं। पस जो शख्स अल्लाह के घर का हज करे या उमरा करे कोई गुनाह की बात नहीं कि वह इन दोनों पहाडिय़ों के बीच फेरा लगाए ।
                                                                       बकर 2: 158

जकात

हिदायत है उन परहेजगारों (वे लोग जो अल्लाह से डरते हुए पापों से दूर रहते है) के लिए जो  गैब पर ईमान लाते हैं, नमाज कायम करते हैं, और जो कुछ हमने इन्हें दिया है उसमें से (अल्लाह की राह में) खर्च करते हैं।
                                                   बकर 2: 2-3
बेशक कामयाब हो गए ईमान वाले जो अपनी नमाजों में खुशु (मन लगाकर) इख्तियार करते हैं, लगू (बेहूदा) बातों  से दूर रहते हैं, जकात के तरीके पर आमिल रहते हैं।
                                                  मोमिनून 23: 1-4

जो लोग अपना माल अल्लाह की राह मे खर्च करते हैं उनके खर्च की मिसाल ऐसी है जैसे एक दाना बोया जाए और उस से सात बालियां निकलें और हर बाली में सौ दाने हों। इसी तरह अल्लाह जिस अमल (कर्म) को चाहता है बढ़ाता है। वह फराख दस्त (मुटठी  खुली रखने वाला) और अलीम (जानने वाला) है।
                                                               बकर  2: 261

जो ब्याज तुम देते हो कि लोगों के माल में शामिल होकर वह बढ़ जाएगा, अल्लाह के नजदीक वह नहीं बढ़ता और जो जकात तुम अल्लाह की खुशनूदी (खुशी) हासिल करने के इरादे से देते हो, उसी के देने वाले वास्तव मे अपना माल बढाते हैं।
                                                                         रूम 30: 39

जो लोग ईमान लाएं और नेक अमल करें और नमाज कायम करें और जकात दें उनका बदला बिना किसी शक के उनके रब के पास है और उनके लिए न कोई डर  है न किसी दुख का मौका है।
                                                                           बकर 2: 277

ऐ नबी ! आप उनके मालों में से सदका लेकर इन्हें पाक कीजिए और (नेकी) की राह में इन्हें बढ़ाइए ।
                                                                                     तौबा 9: 103

और मोमिनीन के मालों में मांगने वालों और नादारों का हक होता है।
                                                                             मआरिज 70: 24-25

वह अपना माल बावजूद महबूब (माल से प्रेम) होने के रिश्तेदारों और यतीमों पर, मिस्कीनों और मुसाफिरों पर, मदद के लिए हाथ फैलाने वालों पर खर्च करता है और गुलामों की आजादी पर खर्च करता है।
                                                                           बकर  2: 177

जो लोग सोना चाँदी जमा कर के रखते हैं और उन्हें खुदा की राह में खर्च नहीं करते उन्हें दर्दनाक अजाब की खुश खबर सुना दो। एक दिन आएगा कि उस सोने चाँदी पर जहन्नुम की आग दहकाई जाएगी और फिर उसी से उन लोगों की पेशानियों, पहलुओं और पीठों को दागा जाएगा ।
                                                                          तौबा 9: 34-35

ऐ ईमान वालो जो पाक माल तुमने कमाया है और जो पैदावार हमने तुम्हारे लिए जमीन से निकाली है उसमें से (सदका और दान ) दिया करो ।
                                                                         बकर  2: 267

और जकात का माल तो सिर्फ  फकीरों (मोहताज जिनके पास आमदनी का साधन न हो) के लिए और मिस्कीनों के लिए है और उन लोगों के लिए जो जकात के काम पर नियुक्त हैं, और जिनका दिल मोहने के लिए और (यह माल) गुलामों को आजाद कराने के लिए, और कर्जदारों की मदद करने में और अल्लाह की राह में (तमाम नेकी के काम जिनसे अल्लाह खुश हो, उलमा की बड़ी तादाद के अनुसार इसका मतलब अल्लाह के लिए जिहाद फी सबिलिल्लाह है), और मुसाफिर नवाजी में काम लेने के लिए है, एक फरीजा ( कर्तव्य ) है अल्लाह की तरफ  से और अल्लाह सब कुछ जानने वाला और दाना (अक्लमंद) व बीना (देखने वाला) है।
                                                                           तौबा 9: 60

वह अल्लाह ही है जिसने तरह-तरह के बाग और बेलों के बाग (अंगूर आदि) और खजूर के बाग और खेतियाँ उगाई जिनसे अलग-अलग प्रकार की पैदावार लेते हैं, अनार और जैतून जो एक दूसरे से मिलते -जुलते भी हैं और नहीं भी मिलते । जब वे फल दें तो उनके फल खाओ और अल्लाह का हक अदा करो जो उस फसल की कटाई के दिन वाजिब होता है।
                                                                            अनआम 6: 141

27.8.11

रोजा


ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, तुम पर रोजे फर्ज कर दिए गए हैं, जिस तरह तुमसे पहले पैगम्बरों के मानने वालों पर फर्ज किए गए थे । उम्मीद है कि  इनसे तुम्हारे अंदर तकवा (परहेजगारी) पैदा होगा । चंद तय दिनों के रोजे हैं। अगर तुम में से कोई बीमार हो, या सफर पर है तो दूसरे दिनों में इतनी गिनती पूरी कर ले। और जिन (बीमार और मुसाफिरों) को इसकी (मोहताजों को खिलाने की)सामर्थ्य  हो, उनके जिम्मे बदले में एक मोहताज का खाना है।   और जो अपनी खुशी से कुछ ज्यादा भलाई करे तो यह उनके लिए बेहतर है। लेकिन अगर समझो तो तुम्हारे हक में अच्छा यही है कि रोजा रखो। रमजान वह महीना है जिसमें कुरआन उतारा गया। जो इंसानों के लिए सरासर हिदायत (मार्गदर्शन) है और ऐसी सरल शिक्षाओं पर आधारित है जो राहेरास्त (सच का रास्ता) दिखाने वाली और सच और झूठ का फर्क खोलकर रख देने वाली है। इसलिए अब से जो शख्स इस महीने को पाए उसको लाजिम है कि पूरे महीने के रोजे रखे ।
                                                                              बकर 2: 183-185

हमने इस कुरआन को एक कद्र वाली (इज्जत वाली) और अजमत (बड़प्पन) वाली रात में उतारा । जानते हो शबे कद्र क्या है ? यह एक ऐसी रात है जो हजार महीनों से ज्यादा बेहतर है (फजीलत रखती है)। इस रात में फरिश्ते और रूह (जिबराइल अलै.) अपने रब के हुक्म से उतरते हैं। आदेश लेकर उतरते हैं। वह रात सरासर सलामती है तुलुअ फज्र तक।
                                                                                 कद्र 97: 1-4

नमाज


ऐ इन्सानो!  इबादत (बन्दगी, वंदना) करो अपने रब की जिसने तुमको पैदा किया और उनको जो तुमसे पहले हुए हैं - ताकि तुम जहन्नम (नर्क, दोजख) से बचे रहो। उस परवरदिगार की इबादत करो, जिसने तुम्हारे लिए जमीन को फर्श बनाया और आसमान को छत की तरह ऊँचा किया। फिर ऊपर से पानी बरसाया और इससे तरह-तरह के फल तुम्हारे खाने के लिए पैदा किए।
                                  बकर 2: 21-22

और मैंने जिन्नों और इन्सानों को पैदा ही इसलिए किया कि वे मेरी इबादत करें।
                                 जारियात 51: 56

नमाज कायम करो और मुशरिकों में न हो जाओ।
                                     रूम 30: 32

कह दीजिए हकीकत में सही रहनुमाई (मार्गदर्शन) तो बस अल्लाह ही की रहनुमाई है और उसकी तरफ  से हमें यह हुक्म मिला है कि कायनात (ब्रह्माण्ड) के मालिक के आगे इताअत (बन्दगी) में सिर झुका दें। नमाज कायम करें। इसका तकवा (परहेजगारी और अल्लाह का डर) अपनाओ और वही है जिसकी तरफ  इकट्ठे  किए जाओगे।
                                                                                              अनआम 6: 71-72

 हिदायत है उन मुत्तकियों के लिए जो गैब (अज्ञात, छिपी हुई बातें) पर ईमान लाते हैं और नमाज कायम करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से खर्च करते हैं।
                                                                                                बकर 2: 2-3

बहिश्त (स्वर्ग) वाले पूछ रहे होगें जहन्नमी (नर्क में रहने वाले) मुजरिमों से 'किस चीज ने तुम्हें दोजख में ला डाला ?' वे जवाब देगें 'हम नमाज न पढ़ते थे।'
                                                                                              मुद्दस्सिर 74 : 40-43

पस अगर ये तौबा कर लें और नमाज कायम करें और जकात दें तो यह तुम्हारे दीनी भाई हैं।
                                                                                                तौबा 9: 11

ये (मोमिनीन) वे लोग हैं कि अगर हम इन्हें जमीन पर सत्ता और हुकुमत दें तो यह नमाज कायम करेंगे और जकात अदा करेंगे भलाई का हुक्म देंगे और बुराई से रोकेंगे।
                                                                                                   हज 22: 41

और जो लोग अपनी नमाज की हिफाजत करते हैं, ये लोग इज्जत के साथ जन्नत के बागों में रहेंगे।
                                                                                             मआरिज 70 : 34-35

और नमाज कायम करो यकीनन नमाज फहश (बेशर्मी) और बुरे कामों से रोकती है।
                                                                                            अनकबूत 29 : 4-5

तबाही है उन नमाजियों के लिए जो अपनी नमाज से गफलत बरतते हैं।
                                                                                         माऊन 107: 4-5

नमाज वास्तव में ऐसा फर्ज है जो समय की पाबंदी के साथ ईमान वालों पर वाजिब किया गया है।
                                                                                             निसा 4: 103

और अपने रब की तारीफ  के साथ तसबीह बयान कीजिए सूरज निकलने से पहले और उसके गुरूब (छिपने) होने से पहले और रात की घडिय़ों में फिर तसबीह (नमाज) अदा कीजिए और दिन के किनारों पर।
                                                                                               हूद 11: 114

नमाज कायम कीजिए सूरज के ढलने के वक्त से रात के अंधेरे तक और फज्र का कुरआन पढने का एहतमाम कीजिए । बेशक कुरआन हाजरी का वक्त है।
                                                                                             बनी इस्राईल 17: 78

और अपनी नमाज न बहुत ऊँची आवाज से पढ़ो और न बहुत धीमी आवाज से, इन दोनों के दरमियान औसत दरजे का लहजा अपनाओ ।
                                                                                              बनी इस्राईल 17: 110

कामयाब हो गए ईमान वाले जो अपनी नमाज में खुशू इख्तियार करते हैं। जो बेहूदा बातों से दूर रहते हैं। जो जकात अदा करने वाले हैं। जो अपनी शर्मगाहों की हिफाजत करने वाले हैं, सिवाय अपनी बीवियों के और लौण्डियों के।  कि उनसे ताल्लुक रखने में उन पर कोई इल्जाम नहीं। जो उनके सिवाय और चाहे वही अल्लाह की मुकर्रर की हुई हदों से निकल जाने वाले हैं। जो अपनी अमानतों और वादे की हिफाजत करने वाले हैं। जो अपनी नमाजों की निगहबानी करते हैं।
                                                                                            मोमिनून: 23  1-9

ऐ ईमान वालो! मदद हासिल करो सब्र और नमाज से।
                                                                                     बकर  2: 153

और रात के कुछ हिस्से में तहज्जुद पढ़ा कीजिए यह आपके लिए मजीद (फजल) है।
                                                                                   बनी इस्राईल 17: 79

मोमिनो! जब जुमे के दिन नमाज के लिए अजान दी जाए तो अल्लाह की याद की तरफ  झपट जाया करो और खरीद-फरोख्त छोड़ दिया करो। यह तुम्हारे हक में बेहतर है, अगर तुम समझ से काम लो ।
                                                                                    जुमुआ  62: 9

पस नमाज कायम करो, जकात अदा करो और अल्लाह से वाबिस्ता हो जाओ (जुड़ जाओ)।
                                                                                      हज 22: 78

और सजदा करो और  (अल्लाह से) करीब हो जाओ
                                                                                        अलक- 96: 19

और रुकू  करो, रुकू करने वालों के साथ।
                                                                                       बकर 2- 2:43

ऐ आदम की औलाद ! हर नमाज के मौके पर अपनी जीनत का लिबास पहन लिया करो और खाओ और पीओ और बेजा न उड़ाओ ।
                                                                                 आराफ  7: 31
                                                     
और मेरी याद के लिए नमाज कायम करो ।
                                                        ताहा 20: 14

और जब तुम सफर पर निकलो तो इस में कोई हर्ज नहीं है कि नमाज को कसर (छोटा) कर दो । (जहाँ फर्ज चार हो दो कर दो )
                                                                                           निसा 4: 101

26.8.11

गुनाह (पाप) - शिर्क व कुफ्र

कुफ्र (इनकार) व शिर्क (अल्लाह के साथ किसी को साझी  बनाना)

कह दो: ऐ इनकार करने वालो (न मानने वालो) मैं उनकी इबादत (बन्दगी, पूजा) नहीं करता जिनकी इबादत तुम करते हो। न तुम उसकी इबादत करने वाले हो जिसकी                                                                                             इबादत मैं करता हूँ। और न मैं उनकी इबादत करने वाला हूँ जिनकी इबादत तुमने की है और न तुम उसकी इबादत करने वाले हो जिसकी इबादत मैं करता हूँ। तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन और मेरे लिए मेरा दीन।
                                                               काफिरून 109 : 1-6

जो लोग अल्लाह के हुक्म व हिदायत को मानने से इन्कार करते हैं और उसके पैगम्बरों को ना हक (बेजा) कत्ल करते हैं और ऐसे लोगों को भी जो अदल व इन्साफ  का हुक्म देते हैं, कत्ल करते हैं, ऐसे लोगों को दर्दनाक अजाब की खुशखबरी सुना दो। ये वे लोग हैं जिनके कर्म दुनिया और आखिरत में बेकार गए और कोई भी उनका मददगार नहीं है।
                                                           आले इमरान 3: 21-22

अल्लाह उस जुर्म को माफ  नहीं करता कि किसी को उसका शरीक (साझी ) ठहराया जाए।
                                                             निसा 4: 48
जब लुकमान ने अपने बेटे को नसीहत करते हुए कहा '' प्यारे बेटे अल्लाह के साथ शिर्क बडा़ भारी जुल्म है।
                                                          लुकमान 31: 13

और अल्लाह को छोड़कर किसी हस्ती को न पुकारो जो तुझो न फायदा पहुँचा सकती है न नुकसान। अगर तू ऐसा करेगा तो जालिमों मे से होगा
                                                            यूनुस 10: 106

ऐ लोगो ! बेशक हमने तुम सबको एक ही मर्द और एक औरत से पैदा किया है और फिर तुम्हारी कोमें और बिरादरियां बना दी ताकि तुम एक दूसरे को पहचानो। हकीकत में  अल्लाह के नजदीक तुम में सबसे ज्यादा इज्जत वाला वह है जो तुम्हारे अन्दर सबसे ज्यादा परहेजगार (अल्लाह से डरने वाला) है।
                                                          हुजुरात 49: 13

तो क्या तुम किताब (कुरआन) के एक हिस्से पर ईमान लाते हो और दूसरे हिस्से के साथ कुफ्र (इन्कार) करते हो, फिर तुम में से जो लोग ऐसा करें उनकी सजा इसके सिवाय और क्या है कि दुनिया की जिन्दगी में जलील (बेइज्जत) व ख्वार होकर रहें और आखिरत में कठोर से कठोर अजाब (सजा) की तरफ  फेर दिए जाएं।
                                                         बकर 2: 85

जिन लोगों ने कुफ्र  (इनकार) का रवैया अपनाया और कुफ्र  की हालत में जान दी, उन पर अल्लाह और फरिश्तों और तमाम इन्सानों की लानत (फटकार) है।
                                                      बकर 2: 161

जिसने अल्लाह और उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और आखिरत के दिन (कयामत) से इनकार किया वह गुमराही में भटककर दूर निकल गया।
                                                         निसा 4: 136
उनसे कहो: अल्लाह और रसूल की इताअत कबूल करो। फिर अगर वे तुम्हारी यह दावत कबूल न करें तो यकीनन यह मुमकिन नहीं कि अल्लाह ऐसे लोगों से मोहब्बत करे जो उसकी और उसके रसूल की इताअत से इन्कार करते हों।
                                                       आले इमरान  3: 32
जो लोग अल्लाह के उतारे कानून के मुताबिक फैसला न करें वही काफिर हैं।
                                                      माइदा  5: 44

झूठी  बातों से परहेज करो ।                      
                           हज  22: 30

अल्लाह की बंदगी करो और उसके साथ किसी को साझी  न बनाओ। अच्छा सलूक करो मां बाप के साथ, रिश्तेदारों के साथ, यतीमों और जरूरतमंदों के साथ, पड़ोसियों के साथ और साथ रहने वालों के साथ और मुसाफिर के साथ, और उनके साथ जो तुम्हारे अधीन हों। अल्लाह ऐसे आदमी को पसन्द नहीं करता जो इतराता हो और डींगें मारता हो और ऐसे लोग भी अल्लाह को पसंद नहीं हैं जो कंजूसी करते हैं और दूसरों को भी कंजूसी की हिदायत देते हैं, और जो कुछ अल्लाह ने अपने फजल से उन्हें दिया है उसे छुपाते हैं। ऐसे काफिर लोगों के लिए हमने रुसवा (बेइज्जत) करने वाला अजाब (सजा)  तैयार कर रखा है। और वे लोग भी अल्लाह को नापसंद हैं जो अपने माल सिर्फ  लोगों को दिखाने के लिए खर्च करते हैं।
                                                    निसा  4: 36-38

ऐ ईमान वालो! अपने सदके (खैरात) को एहसान जताकर और दुख देकर उस आदमी की तरह बरबाद न करो जो लोगों को दिखाने के लिए अपना माल खर्च करता है और अल्लाह और आखरी दिन पर ईमान नहीं रखता ।
                                                    बकर  2: 264

और कयामत के दिन तुम उन लोगों को देखोगे जिन्होंने अल्लाह पर झूठ घड़कर थोपा है और उनके चेहरे काले हैं। क्या घमंडियों का ठिकाना जहन्नम (नर्क) नहीं है?
                                                  जमर 39: 60

रिश्तेदारों को उनका हक दो और मिसकीन (मोहताज, जरूरतमंद) और मुसाफिर को उनका हक दो। फिजूलखर्ची न करो, फिजूलखर्च लोग शैतान के भाई हैं। और शैतान अपने रब का नाशुक्रा है।
                                              बनी इस्राईल 17: 26-27

ऐ लोगो जो ईमान लाए हो जानते बूझते अल्लाह और उसके रसूल (स. अ. व.) के साथ खयानत (धोखाधड़ी, विश्वासघात) न करो, अपनी अमानतों में खयानत न करो ।
                                                  अनफाल 8: 27

और जो कोई खयानत करे (धोखा देकर माल रख ले) तो वह अपनी खयानत समेत कयामत के दिन हाजिर हो जाएगा। फिर हर एक को उसकी कमाई का बदला मिल जाएगा और किसी पर जुल्म न होगा ।
                                          आले इमरान 3: 161

ऐ लोगो जो ईमान लाए हो अगर कोई फासिक (अल्लाह की नाफरमानी करने वाला) तुम्हारे पास कोई खबर लेकर आए तो छानबीन कर लिया करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम किसी गिरोह को अनजाने में तकलीफ व नुकसान पहुंचा बेठो, फिर अपने किए पर पछताओ।
                                           हुजुरात 49: 6

ऐ ईमान लाने वालो ! बहुत गुमान करने से बचो (परहेज करो) क्योंकि कुछ गुमान गुनाह होते हैं। और न टोह में पड़ो और तुम में से कोई किसी की गीबत (चुगली, निन्दा) न करे। क्या तुम में से ऐसा है जो अपने मरे हुए भाई का गोश्त खाना पसन्द करेगा? देखो तुम खुद इससे घृणा करते हो। अल्लाह से डरो, अल्लाह बड़ा तौबा कबूल करने वाला और रहीम है।
                                    हुजुरात 49: 12
(जब किसी आदमी में कोई बुराई मौजूद है तो उसे बयान करने मे क्या हर्ज है ? जवाब में प्यारे नबी (सल्ल.) में फरमाया - अगर किसी में कोई बुराई है और तुम उसकी गैर मौजूदगी में वह बुराई दूसरों को बताओ तो यही गीबत है। अगर वह बुराई उसमें  न हो और तुम उसके सिर थोपो तो यह बोहतान और इल्जाम होगा )

 तुम किसी ऐसे आदमी की बात न मानना जो बहुत कसमें खाने वाला हीन (नीच) है, ताने देता है, चुगलियाँ खाता फिरता है, भलाई से रोकता है, जुल्म व ज्यादती में हद से गुजरने वाला है, हक मारने वाला है, क्रूर है और अधम भी।
                                      कलम  68: 10-13

देखो!  तुम लोगों से कहा जा रहा है कि अल्लाह के लिए माल खर्च करो। तुम में से कुछ लोग हैं, जो इसमें कंजूसी कर रहे हैं। हालांकि हकीकत में वे अपने आप से ही कंजूसी कर रहे हैं। अल्लाह तो गनी है। तुम ही उसके मोहताज हो अगर तुम उसके हुक्म न मानोगे तो वह तुम्हें मिटाकर तुम्हारी जगह दूसरी कौम ले आएगा और वे तुम जैसे न होंगे।
                                               मुहम्मद  47: 38

ऐ ईमान लाने वालो! ये शराब और जुए और देवस्थान और पांसे तो गंदे शैतानी काम हैं। अत: तुम इनसे अलग रहो ताकि तुम कामयाब हो जाओ । शैतान तो बस यही चाहता है कि शराब और जुए के जरिए तुम्हारे बीच  दुश्मनी और कड़वाहट पैदा कर दे और तुम्हें अल्लाह की याद और नमाज  से रोक दे, तो क्या तुम बाज नहीं आओगे?
                                                   माइदा 5: 90-91

और अल्लाह फसाद (लड़ाई-झगड़ा) फैलाने वालों को बिल्कुल पसन्द नहीं करता।
                                                  माइदा  5: 64

और जमीन में फसाद फैलाने की कोशिश न कर अल्लाह फसाद फैलाने वालों को पसन्द नहीं करता।
                                                  कसस  28: 77

जो गुस्से को पी जाते हैं और दूसरों के कुसूर माफ  कर देते हैं ऐसे नेक लोग अल्लाह को बहुत पसन्द हैं।
                                             आले इमरान  3: 134  

जिस किसी आदमी को किसी के खून का बदला लेने या धरती में फसाद फैलाने के सिवाय किसी और वजह से मार डाला तो मानो उसने सारे ही इन्सानों का कत्ल कर डाला। और जिसने जिंदगी बख्शी (यानी जान बचाई) उसने मानो सारे इन्सानों को जिंदगी दी।
                                          माइदा  5: 32

यतीम को मत दबाओ और मांगने वालों को मत झिड़को।
                                         जुहा  93: 9-10
ऐ ईमान वालो। अल्लाह के लिए उठने वाले, इन्साफ  की गवाही देने वाले बनो और किसी गिरोह की दुश्मनी तुम्हें हरगिज इस बात पर न उभारे कि तुम इन्साफ  करना छोड़ दो, तुम्हें चाहिए कि (हर हालत में) इन्साफ  करो। यही परहेजगारी और अल्लाह से डर से मेल खाती बात है। अल्लाह का डर रखो। बेशक अल्लाह उन बातों को जानता जो तुम करते हो।
                                              माइदा  5: 8

ऐ लोगो। जो ईमान लाए हो, तुम क्यों वह बात कहते हो जो करते नहीं हो ? अल्लाह की निगाह में यह बात बहुत ही नापसन्दीदा बात है कि तुम वह बात कहो जो करते नहीं।
                                           सफ्फ  61: 2-3

तबाही  डंडी मारने वालों (कम तोलने-नापने वाले) के लिए। जो नापकर लोगों से लेते हैं तो पूरा लेते हैं। और जब उन्हें नापकर या तौलकर देते हैं तो कम देते हैं। क्या वे समझते नहीं कि उन्हें (जिन्दा होकर) उठना है, एक बड़े दिन। उस दिन संसार के सब लोग रब के सामने (हिसाब लिए) खड़े होंगे।
                                            मुतफ्फिफीन 83: 1-6