27.8.11

रोजा


ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, तुम पर रोजे फर्ज कर दिए गए हैं, जिस तरह तुमसे पहले पैगम्बरों के मानने वालों पर फर्ज किए गए थे । उम्मीद है कि  इनसे तुम्हारे अंदर तकवा (परहेजगारी) पैदा होगा । चंद तय दिनों के रोजे हैं। अगर तुम में से कोई बीमार हो, या सफर पर है तो दूसरे दिनों में इतनी गिनती पूरी कर ले। और जिन (बीमार और मुसाफिरों) को इसकी (मोहताजों को खिलाने की)सामर्थ्य  हो, उनके जिम्मे बदले में एक मोहताज का खाना है।   और जो अपनी खुशी से कुछ ज्यादा भलाई करे तो यह उनके लिए बेहतर है। लेकिन अगर समझो तो तुम्हारे हक में अच्छा यही है कि रोजा रखो। रमजान वह महीना है जिसमें कुरआन उतारा गया। जो इंसानों के लिए सरासर हिदायत (मार्गदर्शन) है और ऐसी सरल शिक्षाओं पर आधारित है जो राहेरास्त (सच का रास्ता) दिखाने वाली और सच और झूठ का फर्क खोलकर रख देने वाली है। इसलिए अब से जो शख्स इस महीने को पाए उसको लाजिम है कि पूरे महीने के रोजे रखे ।
                                                                              बकर 2: 183-185

हमने इस कुरआन को एक कद्र वाली (इज्जत वाली) और अजमत (बड़प्पन) वाली रात में उतारा । जानते हो शबे कद्र क्या है ? यह एक ऐसी रात है जो हजार महीनों से ज्यादा बेहतर है (फजीलत रखती है)। इस रात में फरिश्ते और रूह (जिबराइल अलै.) अपने रब के हुक्म से उतरते हैं। आदेश लेकर उतरते हैं। वह रात सरासर सलामती है तुलुअ फज्र तक।
                                                                                 कद्र 97: 1-4

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