29.8.11

नैतिक मूल्य (अखलाकी कद्रें)

नेकी यह नहीं है कि तुमने अपने चेहरे पूरब की तरफ  कर लिए या पश्चिम की तरफ, बल्कि नेकी यह है कि आदमी अल्लाह को और अन्तिम दिन (कयामत) और फरिश्तों को और अल्लाह की उतारी हुई किताब और उसके पैगम्बरों को दिल से माने, और अल्लाह की मोहब्बत में अपना दिल पसंद माल रिश्तेदारों, और यतीमों (अनाथ) पर, मिस्कीनों और मुसाफिरों पर, मदद के लिए हाथ फैलाने वालों पर, और गुलामों की रिहाई पर खर्च करें। नमाज कायम करें और जकात दें। और नेक वे लोग हैं जब वादा करें उसे निभाएं और तंगी व मुसीबत के समय में और सच और झूठ  की लड़ाई में सब्र करें। यह हैं सच्चे लोग और यही अल्लाह से डरने वाले (परहेजगार) हैं।
                                                                                              बकर 2: 177

तुम नेकी को नहीं पहुंच सकते जब तक कि अपनी वह चीजें (अल्लाह की राह में ) खर्च न करो जिन्हें तुम प्यार करते हो और जो कुछ तुम खर्च करोगे अल्लाह उससे बेखबर न होगा।
      आले इमरान 3: 92

लोगो! हमने तुमको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया है फिर तुम्हारी कौमें और बिरादरियां बना दी ताकि तुम एक दूसरे को पहचानो । हकीकत में अल्लाह के नजदीक तुम में सबसे ज्यादा इज्जत वाला वह है जो तुम्हारे अन्दर सबसे ज्यादा परहेजगार (अल्लाह से डरने वाला) है।
                                                                        हुजुरात 49: 13

फिर तुम्हारा क्या खयाल है कि बेहतर इंसान वह है जिसने अपनी इमारत (भवन) की बुनियाद (आधार) अल्लाह के डर और उसकी खुशी की चाहत पर रखी हो या जिसने अपनी इमारत की बुनियाद एक घाटी की कोख के किनारे पर उठायी और वह उसे लेकर सीधे जहन्नुम (नर्क) की आग मे जा गिरी ? ऐसे जालिम लोगों को अल्लाह कभी सीधी राह (रास्ता) नहीं दिखाता। यह इमारत जो उन्होंने बनाई है, हमेशा उनके दिलों में बे यकीनी की जड़ बनी रहेगी (जिसके निकलने की अब कोई सूरत नहीं है) इसलिए की उनके दिल ही पारा पारा (टुकड़े, टुकड़े) हो जाएं, और अल्लाह जानने वाला और हकीम व दाना है ।
                                                                         तौबा 9: 109-110

उस शख्स की बात से अच्छी बात किसकी होगी जिसने अल्लाह की तरफ  बुलाया और नेक काम किया और कहा कि मैं मुसलमान हँू । और ऐ नबी (स.अ.व.) नेकी और बदी (बुराई) एक से नहीं है, तुम बदी (बुराई) को उस नेकी से मिटाओ जो बेहतरीन हो, तुम देखोगे तुम्हारे साथ जिसकी दुश्मनी थी वह जिगरी दोस्त बन गया। यह गुण (सिफ्त) नसीब नहीं होता मगर उन लोगों को जो सब्र करते हैं, और यह मुकाम (स्थान) नहीं मिलता मगर उन लोगों को जो बड़े  भाग्यशाली होते हैं। और शैतान की तरफ  से कोई उकसाहट महसूस करो तो अल्लाह की पनाह माँग लो, वह सब कुछ जानता है ।
                                                                                 हमीम सजदा 41: 33-36

ऐ लोगो ! जो ईमान लाए हो अल्लाह से डरो और सच्चे लोगों का साथ दो ।
                                                                                  तौबा 9: 119

ऐ लोगो जो ईमान ले आए हो इंसाफ  का झंडा  उठाने वाले और अल्लाह के वास्ते गवाह बनो अगरचे तुम्हारे इंसाफ और तुम्हारी गवाही की चोट खुद तुम्हारे ऊपर या तुम्हारे माता पिता और रिश्तेदारों पर ही क्यों न पड़ती हो। मामला पेश करने वाला (मुद्दई) चाहे मालदार हो या गरीब, अल्लाह तुम से ज्यादा उनका खैरख्वाह है इसलिए अपने मन की पैरवी में इंसाफ  से बाज न रहो (यानी इंसाफ  पर रहो) अगर तुमने लगी लिपटी बात कही या सच्चाई से पहलू बचाया, तो जान लो जो कुछ तुम करते हो अल्लाह को उसकी खबर है।
                                                                                          निसा  4: 135

अल्लाह अदल (इंसाफ , न्याय) और सिलारहमी (रिश्तेदारों के मामले मे अहसान की खास सूरत जिसमें खुशहाल लोगों की दौलत में औलाद और माँ बाप के अलावा रिश्तेदारों का भी हक है और उनकी मदद देने के आदेश) का हुक्म देता है और बुराई (बदी) और बेशर्मी और जुल्म और ज्यादती से मना करता है। वह तुम्हें नसीहत करता है ताकि तुम सबक लो। अल्लाह के साथ किए गए वादे को पूरा करो जबकि तुमने उससे कोई अहद बांधा हो, और अपनी कसमें पक्की करने के बाद तोड़ न डालो जबकि तुम अल्लाह को गवाह बना चुके हो। अल्लाह तुम्हारे सब कामों की खबर रखता है
                                                                            नहल 16: 90 - 91

और नाप तोल में इंसाफ  करो। जब बात कहो तो इंसाफ की कहो भले मामला रिश्तेदार ही का क्यों न हो ।
                                                                           अनआम  6: 153

नेक लोग वे हैं जो अहद (वादा, करार) करें तो उसे पूरा करें ।
                                                                           बनी इस्राईल 17: 34

मुसलमानो। अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि अमानतें (माल, सामान, स्थान, बातें आदि) अमानत के मालिक को सौंप दो और जब लोगों के दरमियान फैसला करो तो इंसाफ  के साथ फैसला करो। अल्लाह तुमको बहुत ही उम्दा नसीहत करता है।
                                                                                निसा 4: 58

ऐ लोगो जो ईमान लाए हो जब किसी तय मुद्दत (समय) के लिए आपस में कर्ज का लेन देन करो तो उसे लिख लिया करो। दोनों पक्षों के दरमियान एक आदमी इंसाफ  के साथ दस्तावेज लिखे, कर्ज लेने वाला लिखवाए। और जिसे अल्लाह ने लिखने पढऩे की काबलियत दी हो उसे लिखने से इंकार नहीं करना चाहिए। वह लिखे और लिखवाए वह आदमी जो उधार ले रहा है। और उसे (लिखने वाले को) अपने रब से डरना चाहिए कि जो मामला तय हुआ हो उसमें कोई कमी बेशी न करे । लेकिन अगर उधार लेने वाला खुद नादान (अज्ञानी) हो या बूढा हो, या लिखवा न सकता हो तो उसका प्रतिनिधि इंसाफ  के साथ इमला (दस्तावेज की शर्तें आदि) कराए। फिर अपने मर्दों में से दो गवाह करवालो। हां जो तिजारती लेनदेन आमने-सामने चुका कर आपस में किया जाता हो उसको न लिखा जाए तो कोई हर्ज नहीं।
                                                                                     बकर 2: 282

(मोमिन) अपनी अमानतों (नकद सामान जो किसी के पास हिफाजत के लिए रख दिया हो) और अपने अहद व पैमा (वादे, करार, समझौता) का पास रखते हैं (निभाते हैं) और अपनी नमाजों की मुहाफिजत (निगहबानी यानी नमाज समय पर आदाब व उसके सब भाग लगन के साथ) करते हैं। यही लोग वारिस (उत्तराधिकारी) बनेगें फिरदौस के (स्वर्ग का सबसे अच्छा स्थान) और उसमें हमेशा रहेंगे।
                                                                                         मोमिनून 23: 8-11

हमने अपने रसूलों को साफ  साफ  निशानियों और हिदायत (मार्गदर्शन) के साथ भेजा और उनके साथ किताब और मिजान (तराजू, नाप तोल और इंसाफ  का स्तर, सच और झूठ का वह मियार जो तोल तोल कर बता देता है कि मानव जीवन व्यवस्था इंसाफ पर स्थापित रहे।) उतारा ताकि लोग इंसाफ  पर डटे (कायम) रहें ।
                                                                                           हदीद 57: 25

और जब लोगों के बीच में फैसला करो तो इंसाफ  के साथ फैसला करो।
                                                                                           निसा 4: 58

और नाप तोल में पूरा इंसाफ  करो, हम हर आदमी पर जिम्मेदारी का उतना ही बोझ रखते हैं जितनी उसमें ताकत है, और जब बात कहो तो इंसाफ  की कहो भले ही मामला रिश्तेदारों ही का क्यो न हो ।  
                                                                                       अनआम 6: 152

28.8.11

हज


बेशक सबसे पहली इबादतगाह जो इंसानों के लिए बनाई गई वही है जो मक्का में है। इसको खैरो बरकत दी गई थी और तमाम दुनिया वालों के लिए मार्गदर्शन (हिदायत) के लिए केन्द्र बनाया गया था। इसमें खुली हुई निशानियां हैं। इब्राहीम का इबादत का स्थान है और इसका हाल यह है कि जो इसमें दाखिल हुआ वह (मरते दम तक अल्लाह की फरमाबरदारी और वफादारी पर कायम रहा)। लोगों पर अल्लाह का यह हक है कि जो इस घर तक पहुँचने की ताकत रखता हो तो उस घर (काबा) का हज करे, और जो कोई इस हुक्म की पैरवी से इन्कार करे तो उसे मालूम होना चाहिए कि अल्लाह तमाम दुनिया वालों से बेनियाज है।
                              आले इमरान 3: 96-97

हज के चंद महीने हैं जो सबको मालूम है।
                                             बकर 2: 197

और सिर के बाल उस समय तक न मुण्डवाओ जब तक कुरबानी का जानवर अपने ठिकाने पर न पहुँच जाए ।
                                                                            बकर 2: 196

इसमें कोई हर्ज नहीं कि तुम हज के साथ-साथ अपने परवरदिगार का फजल तलाश करो।
                                                                             बकर 2: 198

और चाहिए कि पुराने घर (काबा) का तवाफ (सात बार परिक्रमा) करे ।
                                                                         हज 22: 29

फिर जब अराफात (जगह का नाम) से लौटो तो मुजलदफा के पास ठहर कर अल्लाह को याद करो।
                                                                       बकर 2: 198

इसमें शक नहीं कि सफा व मरवा (पहाडिय़ों के नाम) अल्लाह की निशानियों में से हैं। पस जो शख्स अल्लाह के घर का हज करे या उमरा करे कोई गुनाह की बात नहीं कि वह इन दोनों पहाडिय़ों के बीच फेरा लगाए ।
                                                                       बकर 2: 158

जकात

हिदायत है उन परहेजगारों (वे लोग जो अल्लाह से डरते हुए पापों से दूर रहते है) के लिए जो  गैब पर ईमान लाते हैं, नमाज कायम करते हैं, और जो कुछ हमने इन्हें दिया है उसमें से (अल्लाह की राह में) खर्च करते हैं।
                                                   बकर 2: 2-3
बेशक कामयाब हो गए ईमान वाले जो अपनी नमाजों में खुशु (मन लगाकर) इख्तियार करते हैं, लगू (बेहूदा) बातों  से दूर रहते हैं, जकात के तरीके पर आमिल रहते हैं।
                                                  मोमिनून 23: 1-4

जो लोग अपना माल अल्लाह की राह मे खर्च करते हैं उनके खर्च की मिसाल ऐसी है जैसे एक दाना बोया जाए और उस से सात बालियां निकलें और हर बाली में सौ दाने हों। इसी तरह अल्लाह जिस अमल (कर्म) को चाहता है बढ़ाता है। वह फराख दस्त (मुटठी  खुली रखने वाला) और अलीम (जानने वाला) है।
                                                               बकर  2: 261

जो ब्याज तुम देते हो कि लोगों के माल में शामिल होकर वह बढ़ जाएगा, अल्लाह के नजदीक वह नहीं बढ़ता और जो जकात तुम अल्लाह की खुशनूदी (खुशी) हासिल करने के इरादे से देते हो, उसी के देने वाले वास्तव मे अपना माल बढाते हैं।
                                                                         रूम 30: 39

जो लोग ईमान लाएं और नेक अमल करें और नमाज कायम करें और जकात दें उनका बदला बिना किसी शक के उनके रब के पास है और उनके लिए न कोई डर  है न किसी दुख का मौका है।
                                                                           बकर 2: 277

ऐ नबी ! आप उनके मालों में से सदका लेकर इन्हें पाक कीजिए और (नेकी) की राह में इन्हें बढ़ाइए ।
                                                                                     तौबा 9: 103

और मोमिनीन के मालों में मांगने वालों और नादारों का हक होता है।
                                                                             मआरिज 70: 24-25

वह अपना माल बावजूद महबूब (माल से प्रेम) होने के रिश्तेदारों और यतीमों पर, मिस्कीनों और मुसाफिरों पर, मदद के लिए हाथ फैलाने वालों पर खर्च करता है और गुलामों की आजादी पर खर्च करता है।
                                                                           बकर  2: 177

जो लोग सोना चाँदी जमा कर के रखते हैं और उन्हें खुदा की राह में खर्च नहीं करते उन्हें दर्दनाक अजाब की खुश खबर सुना दो। एक दिन आएगा कि उस सोने चाँदी पर जहन्नुम की आग दहकाई जाएगी और फिर उसी से उन लोगों की पेशानियों, पहलुओं और पीठों को दागा जाएगा ।
                                                                          तौबा 9: 34-35

ऐ ईमान वालो जो पाक माल तुमने कमाया है और जो पैदावार हमने तुम्हारे लिए जमीन से निकाली है उसमें से (सदका और दान ) दिया करो ।
                                                                         बकर  2: 267

और जकात का माल तो सिर्फ  फकीरों (मोहताज जिनके पास आमदनी का साधन न हो) के लिए और मिस्कीनों के लिए है और उन लोगों के लिए जो जकात के काम पर नियुक्त हैं, और जिनका दिल मोहने के लिए और (यह माल) गुलामों को आजाद कराने के लिए, और कर्जदारों की मदद करने में और अल्लाह की राह में (तमाम नेकी के काम जिनसे अल्लाह खुश हो, उलमा की बड़ी तादाद के अनुसार इसका मतलब अल्लाह के लिए जिहाद फी सबिलिल्लाह है), और मुसाफिर नवाजी में काम लेने के लिए है, एक फरीजा ( कर्तव्य ) है अल्लाह की तरफ  से और अल्लाह सब कुछ जानने वाला और दाना (अक्लमंद) व बीना (देखने वाला) है।
                                                                           तौबा 9: 60

वह अल्लाह ही है जिसने तरह-तरह के बाग और बेलों के बाग (अंगूर आदि) और खजूर के बाग और खेतियाँ उगाई जिनसे अलग-अलग प्रकार की पैदावार लेते हैं, अनार और जैतून जो एक दूसरे से मिलते -जुलते भी हैं और नहीं भी मिलते । जब वे फल दें तो उनके फल खाओ और अल्लाह का हक अदा करो जो उस फसल की कटाई के दिन वाजिब होता है।
                                                                            अनआम 6: 141

27.8.11

रोजा


ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, तुम पर रोजे फर्ज कर दिए गए हैं, जिस तरह तुमसे पहले पैगम्बरों के मानने वालों पर फर्ज किए गए थे । उम्मीद है कि  इनसे तुम्हारे अंदर तकवा (परहेजगारी) पैदा होगा । चंद तय दिनों के रोजे हैं। अगर तुम में से कोई बीमार हो, या सफर पर है तो दूसरे दिनों में इतनी गिनती पूरी कर ले। और जिन (बीमार और मुसाफिरों) को इसकी (मोहताजों को खिलाने की)सामर्थ्य  हो, उनके जिम्मे बदले में एक मोहताज का खाना है।   और जो अपनी खुशी से कुछ ज्यादा भलाई करे तो यह उनके लिए बेहतर है। लेकिन अगर समझो तो तुम्हारे हक में अच्छा यही है कि रोजा रखो। रमजान वह महीना है जिसमें कुरआन उतारा गया। जो इंसानों के लिए सरासर हिदायत (मार्गदर्शन) है और ऐसी सरल शिक्षाओं पर आधारित है जो राहेरास्त (सच का रास्ता) दिखाने वाली और सच और झूठ का फर्क खोलकर रख देने वाली है। इसलिए अब से जो शख्स इस महीने को पाए उसको लाजिम है कि पूरे महीने के रोजे रखे ।
                                                                              बकर 2: 183-185

हमने इस कुरआन को एक कद्र वाली (इज्जत वाली) और अजमत (बड़प्पन) वाली रात में उतारा । जानते हो शबे कद्र क्या है ? यह एक ऐसी रात है जो हजार महीनों से ज्यादा बेहतर है (फजीलत रखती है)। इस रात में फरिश्ते और रूह (जिबराइल अलै.) अपने रब के हुक्म से उतरते हैं। आदेश लेकर उतरते हैं। वह रात सरासर सलामती है तुलुअ फज्र तक।
                                                                                 कद्र 97: 1-4

नमाज


ऐ इन्सानो!  इबादत (बन्दगी, वंदना) करो अपने रब की जिसने तुमको पैदा किया और उनको जो तुमसे पहले हुए हैं - ताकि तुम जहन्नम (नर्क, दोजख) से बचे रहो। उस परवरदिगार की इबादत करो, जिसने तुम्हारे लिए जमीन को फर्श बनाया और आसमान को छत की तरह ऊँचा किया। फिर ऊपर से पानी बरसाया और इससे तरह-तरह के फल तुम्हारे खाने के लिए पैदा किए।
                                  बकर 2: 21-22

और मैंने जिन्नों और इन्सानों को पैदा ही इसलिए किया कि वे मेरी इबादत करें।
                                 जारियात 51: 56

नमाज कायम करो और मुशरिकों में न हो जाओ।
                                     रूम 30: 32

कह दीजिए हकीकत में सही रहनुमाई (मार्गदर्शन) तो बस अल्लाह ही की रहनुमाई है और उसकी तरफ  से हमें यह हुक्म मिला है कि कायनात (ब्रह्माण्ड) के मालिक के आगे इताअत (बन्दगी) में सिर झुका दें। नमाज कायम करें। इसका तकवा (परहेजगारी और अल्लाह का डर) अपनाओ और वही है जिसकी तरफ  इकट्ठे  किए जाओगे।
                                                                                              अनआम 6: 71-72

 हिदायत है उन मुत्तकियों के लिए जो गैब (अज्ञात, छिपी हुई बातें) पर ईमान लाते हैं और नमाज कायम करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से खर्च करते हैं।
                                                                                                बकर 2: 2-3

बहिश्त (स्वर्ग) वाले पूछ रहे होगें जहन्नमी (नर्क में रहने वाले) मुजरिमों से 'किस चीज ने तुम्हें दोजख में ला डाला ?' वे जवाब देगें 'हम नमाज न पढ़ते थे।'
                                                                                              मुद्दस्सिर 74 : 40-43

पस अगर ये तौबा कर लें और नमाज कायम करें और जकात दें तो यह तुम्हारे दीनी भाई हैं।
                                                                                                तौबा 9: 11

ये (मोमिनीन) वे लोग हैं कि अगर हम इन्हें जमीन पर सत्ता और हुकुमत दें तो यह नमाज कायम करेंगे और जकात अदा करेंगे भलाई का हुक्म देंगे और बुराई से रोकेंगे।
                                                                                                   हज 22: 41

और जो लोग अपनी नमाज की हिफाजत करते हैं, ये लोग इज्जत के साथ जन्नत के बागों में रहेंगे।
                                                                                             मआरिज 70 : 34-35

और नमाज कायम करो यकीनन नमाज फहश (बेशर्मी) और बुरे कामों से रोकती है।
                                                                                            अनकबूत 29 : 4-5

तबाही है उन नमाजियों के लिए जो अपनी नमाज से गफलत बरतते हैं।
                                                                                         माऊन 107: 4-5

नमाज वास्तव में ऐसा फर्ज है जो समय की पाबंदी के साथ ईमान वालों पर वाजिब किया गया है।
                                                                                             निसा 4: 103

और अपने रब की तारीफ  के साथ तसबीह बयान कीजिए सूरज निकलने से पहले और उसके गुरूब (छिपने) होने से पहले और रात की घडिय़ों में फिर तसबीह (नमाज) अदा कीजिए और दिन के किनारों पर।
                                                                                               हूद 11: 114

नमाज कायम कीजिए सूरज के ढलने के वक्त से रात के अंधेरे तक और फज्र का कुरआन पढने का एहतमाम कीजिए । बेशक कुरआन हाजरी का वक्त है।
                                                                                             बनी इस्राईल 17: 78

और अपनी नमाज न बहुत ऊँची आवाज से पढ़ो और न बहुत धीमी आवाज से, इन दोनों के दरमियान औसत दरजे का लहजा अपनाओ ।
                                                                                              बनी इस्राईल 17: 110

कामयाब हो गए ईमान वाले जो अपनी नमाज में खुशू इख्तियार करते हैं। जो बेहूदा बातों से दूर रहते हैं। जो जकात अदा करने वाले हैं। जो अपनी शर्मगाहों की हिफाजत करने वाले हैं, सिवाय अपनी बीवियों के और लौण्डियों के।  कि उनसे ताल्लुक रखने में उन पर कोई इल्जाम नहीं। जो उनके सिवाय और चाहे वही अल्लाह की मुकर्रर की हुई हदों से निकल जाने वाले हैं। जो अपनी अमानतों और वादे की हिफाजत करने वाले हैं। जो अपनी नमाजों की निगहबानी करते हैं।
                                                                                            मोमिनून: 23  1-9

ऐ ईमान वालो! मदद हासिल करो सब्र और नमाज से।
                                                                                     बकर  2: 153

और रात के कुछ हिस्से में तहज्जुद पढ़ा कीजिए यह आपके लिए मजीद (फजल) है।
                                                                                   बनी इस्राईल 17: 79

मोमिनो! जब जुमे के दिन नमाज के लिए अजान दी जाए तो अल्लाह की याद की तरफ  झपट जाया करो और खरीद-फरोख्त छोड़ दिया करो। यह तुम्हारे हक में बेहतर है, अगर तुम समझ से काम लो ।
                                                                                    जुमुआ  62: 9

पस नमाज कायम करो, जकात अदा करो और अल्लाह से वाबिस्ता हो जाओ (जुड़ जाओ)।
                                                                                      हज 22: 78

और सजदा करो और  (अल्लाह से) करीब हो जाओ
                                                                                        अलक- 96: 19

और रुकू  करो, रुकू करने वालों के साथ।
                                                                                       बकर 2- 2:43

ऐ आदम की औलाद ! हर नमाज के मौके पर अपनी जीनत का लिबास पहन लिया करो और खाओ और पीओ और बेजा न उड़ाओ ।
                                                                                 आराफ  7: 31
                                                     
और मेरी याद के लिए नमाज कायम करो ।
                                                        ताहा 20: 14

और जब तुम सफर पर निकलो तो इस में कोई हर्ज नहीं है कि नमाज को कसर (छोटा) कर दो । (जहाँ फर्ज चार हो दो कर दो )
                                                                                           निसा 4: 101

26.8.11

गुनाह (पाप) - शिर्क व कुफ्र

कुफ्र (इनकार) व शिर्क (अल्लाह के साथ किसी को साझी  बनाना)

कह दो: ऐ इनकार करने वालो (न मानने वालो) मैं उनकी इबादत (बन्दगी, पूजा) नहीं करता जिनकी इबादत तुम करते हो। न तुम उसकी इबादत करने वाले हो जिसकी                                                                                             इबादत मैं करता हूँ। और न मैं उनकी इबादत करने वाला हूँ जिनकी इबादत तुमने की है और न तुम उसकी इबादत करने वाले हो जिसकी इबादत मैं करता हूँ। तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन और मेरे लिए मेरा दीन।
                                                               काफिरून 109 : 1-6

जो लोग अल्लाह के हुक्म व हिदायत को मानने से इन्कार करते हैं और उसके पैगम्बरों को ना हक (बेजा) कत्ल करते हैं और ऐसे लोगों को भी जो अदल व इन्साफ  का हुक्म देते हैं, कत्ल करते हैं, ऐसे लोगों को दर्दनाक अजाब की खुशखबरी सुना दो। ये वे लोग हैं जिनके कर्म दुनिया और आखिरत में बेकार गए और कोई भी उनका मददगार नहीं है।
                                                           आले इमरान 3: 21-22

अल्लाह उस जुर्म को माफ  नहीं करता कि किसी को उसका शरीक (साझी ) ठहराया जाए।
                                                             निसा 4: 48
जब लुकमान ने अपने बेटे को नसीहत करते हुए कहा '' प्यारे बेटे अल्लाह के साथ शिर्क बडा़ भारी जुल्म है।
                                                          लुकमान 31: 13

और अल्लाह को छोड़कर किसी हस्ती को न पुकारो जो तुझो न फायदा पहुँचा सकती है न नुकसान। अगर तू ऐसा करेगा तो जालिमों मे से होगा
                                                            यूनुस 10: 106

ऐ लोगो ! बेशक हमने तुम सबको एक ही मर्द और एक औरत से पैदा किया है और फिर तुम्हारी कोमें और बिरादरियां बना दी ताकि तुम एक दूसरे को पहचानो। हकीकत में  अल्लाह के नजदीक तुम में सबसे ज्यादा इज्जत वाला वह है जो तुम्हारे अन्दर सबसे ज्यादा परहेजगार (अल्लाह से डरने वाला) है।
                                                          हुजुरात 49: 13

तो क्या तुम किताब (कुरआन) के एक हिस्से पर ईमान लाते हो और दूसरे हिस्से के साथ कुफ्र (इन्कार) करते हो, फिर तुम में से जो लोग ऐसा करें उनकी सजा इसके सिवाय और क्या है कि दुनिया की जिन्दगी में जलील (बेइज्जत) व ख्वार होकर रहें और आखिरत में कठोर से कठोर अजाब (सजा) की तरफ  फेर दिए जाएं।
                                                         बकर 2: 85

जिन लोगों ने कुफ्र  (इनकार) का रवैया अपनाया और कुफ्र  की हालत में जान दी, उन पर अल्लाह और फरिश्तों और तमाम इन्सानों की लानत (फटकार) है।
                                                      बकर 2: 161

जिसने अल्लाह और उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और आखिरत के दिन (कयामत) से इनकार किया वह गुमराही में भटककर दूर निकल गया।
                                                         निसा 4: 136
उनसे कहो: अल्लाह और रसूल की इताअत कबूल करो। फिर अगर वे तुम्हारी यह दावत कबूल न करें तो यकीनन यह मुमकिन नहीं कि अल्लाह ऐसे लोगों से मोहब्बत करे जो उसकी और उसके रसूल की इताअत से इन्कार करते हों।
                                                       आले इमरान  3: 32
जो लोग अल्लाह के उतारे कानून के मुताबिक फैसला न करें वही काफिर हैं।
                                                      माइदा  5: 44

झूठी  बातों से परहेज करो ।                      
                           हज  22: 30

अल्लाह की बंदगी करो और उसके साथ किसी को साझी  न बनाओ। अच्छा सलूक करो मां बाप के साथ, रिश्तेदारों के साथ, यतीमों और जरूरतमंदों के साथ, पड़ोसियों के साथ और साथ रहने वालों के साथ और मुसाफिर के साथ, और उनके साथ जो तुम्हारे अधीन हों। अल्लाह ऐसे आदमी को पसन्द नहीं करता जो इतराता हो और डींगें मारता हो और ऐसे लोग भी अल्लाह को पसंद नहीं हैं जो कंजूसी करते हैं और दूसरों को भी कंजूसी की हिदायत देते हैं, और जो कुछ अल्लाह ने अपने फजल से उन्हें दिया है उसे छुपाते हैं। ऐसे काफिर लोगों के लिए हमने रुसवा (बेइज्जत) करने वाला अजाब (सजा)  तैयार कर रखा है। और वे लोग भी अल्लाह को नापसंद हैं जो अपने माल सिर्फ  लोगों को दिखाने के लिए खर्च करते हैं।
                                                    निसा  4: 36-38

ऐ ईमान वालो! अपने सदके (खैरात) को एहसान जताकर और दुख देकर उस आदमी की तरह बरबाद न करो जो लोगों को दिखाने के लिए अपना माल खर्च करता है और अल्लाह और आखरी दिन पर ईमान नहीं रखता ।
                                                    बकर  2: 264

और कयामत के दिन तुम उन लोगों को देखोगे जिन्होंने अल्लाह पर झूठ घड़कर थोपा है और उनके चेहरे काले हैं। क्या घमंडियों का ठिकाना जहन्नम (नर्क) नहीं है?
                                                  जमर 39: 60

रिश्तेदारों को उनका हक दो और मिसकीन (मोहताज, जरूरतमंद) और मुसाफिर को उनका हक दो। फिजूलखर्ची न करो, फिजूलखर्च लोग शैतान के भाई हैं। और शैतान अपने रब का नाशुक्रा है।
                                              बनी इस्राईल 17: 26-27

ऐ लोगो जो ईमान लाए हो जानते बूझते अल्लाह और उसके रसूल (स. अ. व.) के साथ खयानत (धोखाधड़ी, विश्वासघात) न करो, अपनी अमानतों में खयानत न करो ।
                                                  अनफाल 8: 27

और जो कोई खयानत करे (धोखा देकर माल रख ले) तो वह अपनी खयानत समेत कयामत के दिन हाजिर हो जाएगा। फिर हर एक को उसकी कमाई का बदला मिल जाएगा और किसी पर जुल्म न होगा ।
                                          आले इमरान 3: 161

ऐ लोगो जो ईमान लाए हो अगर कोई फासिक (अल्लाह की नाफरमानी करने वाला) तुम्हारे पास कोई खबर लेकर आए तो छानबीन कर लिया करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम किसी गिरोह को अनजाने में तकलीफ व नुकसान पहुंचा बेठो, फिर अपने किए पर पछताओ।
                                           हुजुरात 49: 6

ऐ ईमान लाने वालो ! बहुत गुमान करने से बचो (परहेज करो) क्योंकि कुछ गुमान गुनाह होते हैं। और न टोह में पड़ो और तुम में से कोई किसी की गीबत (चुगली, निन्दा) न करे। क्या तुम में से ऐसा है जो अपने मरे हुए भाई का गोश्त खाना पसन्द करेगा? देखो तुम खुद इससे घृणा करते हो। अल्लाह से डरो, अल्लाह बड़ा तौबा कबूल करने वाला और रहीम है।
                                    हुजुरात 49: 12
(जब किसी आदमी में कोई बुराई मौजूद है तो उसे बयान करने मे क्या हर्ज है ? जवाब में प्यारे नबी (सल्ल.) में फरमाया - अगर किसी में कोई बुराई है और तुम उसकी गैर मौजूदगी में वह बुराई दूसरों को बताओ तो यही गीबत है। अगर वह बुराई उसमें  न हो और तुम उसके सिर थोपो तो यह बोहतान और इल्जाम होगा )

 तुम किसी ऐसे आदमी की बात न मानना जो बहुत कसमें खाने वाला हीन (नीच) है, ताने देता है, चुगलियाँ खाता फिरता है, भलाई से रोकता है, जुल्म व ज्यादती में हद से गुजरने वाला है, हक मारने वाला है, क्रूर है और अधम भी।
                                      कलम  68: 10-13

देखो!  तुम लोगों से कहा जा रहा है कि अल्लाह के लिए माल खर्च करो। तुम में से कुछ लोग हैं, जो इसमें कंजूसी कर रहे हैं। हालांकि हकीकत में वे अपने आप से ही कंजूसी कर रहे हैं। अल्लाह तो गनी है। तुम ही उसके मोहताज हो अगर तुम उसके हुक्म न मानोगे तो वह तुम्हें मिटाकर तुम्हारी जगह दूसरी कौम ले आएगा और वे तुम जैसे न होंगे।
                                               मुहम्मद  47: 38

ऐ ईमान लाने वालो! ये शराब और जुए और देवस्थान और पांसे तो गंदे शैतानी काम हैं। अत: तुम इनसे अलग रहो ताकि तुम कामयाब हो जाओ । शैतान तो बस यही चाहता है कि शराब और जुए के जरिए तुम्हारे बीच  दुश्मनी और कड़वाहट पैदा कर दे और तुम्हें अल्लाह की याद और नमाज  से रोक दे, तो क्या तुम बाज नहीं आओगे?
                                                   माइदा 5: 90-91

और अल्लाह फसाद (लड़ाई-झगड़ा) फैलाने वालों को बिल्कुल पसन्द नहीं करता।
                                                  माइदा  5: 64

और जमीन में फसाद फैलाने की कोशिश न कर अल्लाह फसाद फैलाने वालों को पसन्द नहीं करता।
                                                  कसस  28: 77

जो गुस्से को पी जाते हैं और दूसरों के कुसूर माफ  कर देते हैं ऐसे नेक लोग अल्लाह को बहुत पसन्द हैं।
                                             आले इमरान  3: 134  

जिस किसी आदमी को किसी के खून का बदला लेने या धरती में फसाद फैलाने के सिवाय किसी और वजह से मार डाला तो मानो उसने सारे ही इन्सानों का कत्ल कर डाला। और जिसने जिंदगी बख्शी (यानी जान बचाई) उसने मानो सारे इन्सानों को जिंदगी दी।
                                          माइदा  5: 32

यतीम को मत दबाओ और मांगने वालों को मत झिड़को।
                                         जुहा  93: 9-10
ऐ ईमान वालो। अल्लाह के लिए उठने वाले, इन्साफ  की गवाही देने वाले बनो और किसी गिरोह की दुश्मनी तुम्हें हरगिज इस बात पर न उभारे कि तुम इन्साफ  करना छोड़ दो, तुम्हें चाहिए कि (हर हालत में) इन्साफ  करो। यही परहेजगारी और अल्लाह से डर से मेल खाती बात है। अल्लाह का डर रखो। बेशक अल्लाह उन बातों को जानता जो तुम करते हो।
                                              माइदा  5: 8

ऐ लोगो। जो ईमान लाए हो, तुम क्यों वह बात कहते हो जो करते नहीं हो ? अल्लाह की निगाह में यह बात बहुत ही नापसन्दीदा बात है कि तुम वह बात कहो जो करते नहीं।
                                           सफ्फ  61: 2-3

तबाही  डंडी मारने वालों (कम तोलने-नापने वाले) के लिए। जो नापकर लोगों से लेते हैं तो पूरा लेते हैं। और जब उन्हें नापकर या तौलकर देते हैं तो कम देते हैं। क्या वे समझते नहीं कि उन्हें (जिन्दा होकर) उठना है, एक बड़े दिन। उस दिन संसार के सब लोग रब के सामने (हिसाब लिए) खड़े होंगे।
                                            मुतफ्फिफीन 83: 1-6

24.8.11

ईमान व अमल (विश्वास और कर्म)


 ऐ ईमान लाने वालो!  ईमान (पक्का यकीन ) लाओ अल्लाह पर, और उसके पैगम्बर पर और उस किताब पर जो उसने अपने पैगम्बर पर उतारी है और हर उस किताब पर जो उससे पहले वो उतार चुका है। और जिसने अल्लाह और उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और उसके पैगम्बरों और आखिरी दिन से इनकार किया तो वह भटककर बहुत दूर निकल गया
                                                        निसा 4: 136
 
जो लोग गैब (छिपी हुई बातें, जो इंसानी दिमाग से परे है) पर ईमान लाते हैं, और नमाज कायम करते हैं, और जो माल हमने दिया उसमें से खर्च करते हैं (नेक कामों में) और जो ईमान लाते हैं जो आपकी तरफ  उतारा गया, और जो आपसे पहले उतारा गया, और वे आखिरत (परलोक) पर भी यकीन रखते हैं। यही लोग अपने रब की हिदायत पर हैं, और यही लोग कामयाब हैं।
                                                         बकर 2: 3-5

ये सब अल्लाह और उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और रसूलों को मानते हैं और उनका कहना यह है कि हम अल्लाह के रसूलों को एक दूसरे से अलग नहीं करते । हमने सुना और इताअत कबूल की, मालिक हम तुझसे माफी चाहते हैं और हमें तेरी ही तरफ पलटना है।
                                            बकर 2: 285

नेकी यह नहीं है कि तुमने अपने चेहरे मशरिक (पूरब) या मगरिब (पश्चिम) की तरफ  कर लिए, बल्कि नेकी तो हकीकत में उस शख्स की नेकी है, जो ईमान लाए (दिल से मानें) -
1 अल्लाह पर
2 आखिरत के दिन पर
3 फरिश्तों पर
4 किताबों पर और
5 पैगम्बरों पर
और अल्लाह की मोहब्बत में अपना मनपसन्द माल रिश्तेदारों और यतीमों पर, मिस्कीनों और मुसाफिरों, मदद के लिए हाथ फैलाने वालों, और गुलामों की रिहाई पर खर्च करें, नमाज कायम करें और जकात दें। और नेक लोग वे हैं कि जब अहद (वादा) करे तो उसे पूरा करे और तंगी और मुसीबत के वक्त में और सच और झूठ की लड़ाई में सब्र करे, यही हैं सच्चे लोग और यही लोग अल्लाह से डरने वाले (पाप से परहेज करने वाले) हैं।
                                                                    बकर 2: 177

 तुम्हारा माबूद (जिसकी उपासना या पूजा की जाए) अकेला माबूद है। उस मेहरबान और दयावान के सिवाय कोई माबूद नहीं ।
                                                                 बकर 2: 163

जमाने की कसम, इन्सान हकीकत में घाटे में है सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और नेक अमल (कर्म) करते रहे, और एक दूसरे को हक की नसीहत और सब्र की वसीयत (ताकीद) करते रहे।
                                                                  अस्र 103: 1-3

 तुम्हारे लिए अल्लाह के पैगम्बर बेहतरीन नमूना (आदर्श) हैं, यानी उसके लिए जो अल्लाह और आखरी दिन की उम्मीद रखता हो और अल्लाह को बहुत याद करे।
                                                                   अहजाब 33: 21
 कहो, ऐ इन्सानो ! मैं तुम सबकी तरफ  उस अल्लाह का पैगम्बर हूँ  जो जमीन और आसमानों का मालिक है। उसके सिवाय कोई अल्लाह नहीं है। वही जिंदगी देता है और वही मौत देता है। पस ईमान लाओ अल्लाह पर और उसके भेजे हुए उम्मी (जो पढ़े लिखे नहीं है) नबी पर जो अल्लाह के हुक्म मानता है, और पैरवी करो उसकी, उम्मीद है कि तुम सच्चा रास्ता पा लोगे ।
                                                               आराफ  7: 158 

 अल्लाह की मस्जिदों को आबाद करने वाले तो वही लोग हो सकते हैं जो अल्लाह और आखिरत के दिन को मानें और नमाज कायम करें, जकात दें, और अल्लाह के सिवाय किसी से न डरें । उन्हीं से उम्मीद है कि वे सीधे रास्ते चलेंगे ।
                                                              तौबा  9: 18  

 ऐ नबी (स.अ.व.) उनसे कहो कि आओ मैं तुम्हे बताऊं तुम्हारे रब ने क्या पाबंदियां लागू की हैं,
यह कि :
1  उसके (रब के) साथ किसी को शरीक न करो ।
2  और वाल्दैन (मां बाप) के साथ नेक सलूक करो ।
3  और अपनी संतान को गरीबी की वजह से कत्ल न करो। हम तुम्हें भी रिज्क (रोजी रोटी) देते हैं और उनको भी देंगे।
4  और बेशर्मी की बातों के करीब भी न जाओ, चाहें वे खुली हों या छिपी।
5 और किसी जान को जिसे अल्लाह ने मोहतरम (इज्जत के काबिल) ठहराया है हलाक न करो मगर हक के साथ। यह बातें हैं जिनकी हिदायत उसने तुम्हें की है शायद कि समझबूझ से काम लो ।
6  और यह कि यतीम के माल के करीब न जाओ मगर ऐसे तरीके से जो बेहतरीन हो, यहां तक कि वह बालिग हो जाए।
7.  और नाप तोल में पूरा इंसाफ  करो। हम हर आदमी पर जिम्मेदारी का उतना ही बोझ रखते हैं जितनी उसकी ताकत है।
8.  और जब बात कहो तो इंसाफ  की कहो, भले ही मामला अपने रिश्तेदारों का ही क्यों न हो ।
9.  और अल्लाह से किए गए अहद (करार) को पूरा करो। इन बातों की हिदायत अल्लाह ने तुम्हें की है, शायद कि तुम नसीहत कबूल करो।
10.  इसके साथ यह हिदायत है कि यही मेरा सीधा रास्ता है, इसलिए तुम उस पर चलो और दूसरे रास्तों पर न चलो कि वे उसके (अल्लाह के रास्ते) से हटाकर तुम्हें गुमराह कर देंगे। यह वह हिदायत है जो तुम्हारे रब ने तुम्हें की है, शायद कि तुम बुरे कामों से बचो ।
                                             अनआम 6 : 151-153     

और  रात और दिन और सूरज और चाँद उसकी निशानियों में से हैं। तुम लोग न तो सूरज को सजदा (आदर और वंदना में जमीन पर माथा टेकना) करो, न चाँद को बल्कि अल्लाह ही को सजदा करो, जिसने इन तमाम चीजों को पैदा किया है।
                                              हा मीम सजदा 41: 37

हम तेरी ही इबादत (उपासना, पूजा) करते हैं और तुझी से मदद चाहते हैं।
                                                             फातिहा  1: 4 

अगर अल्लाह तुम्हारा मददगार हो तो तुम पर कोई गालिब (नियंत्रण, विजय) नहीं आ सकता। अगर वह तुम्हें छोड़ दे तो फिर कौन हो सकता है जो इसके बाद, तुम्हारी मदद करे? और मोमिनों को अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिए ।
                                                               आले इमरान  3: 160 

 लोगो! उसी की पैरवी (अनुसरण) करो जो तुम्हारे परवरदिगार की तरफ  से तुम पर उतरा है। और उसको छोड़कर (अपने मन घडंत) दूसरे सरपरस्तों की पैरवी न करो । मगर तुम बहुत कम नसीहत मानते हो।
                                                                   आराफ  7: 3

वे लोग जिन्होंने उस (अल्लाह) के सिवाय दूसरे सरपरस्त बना रखे हैं और अपने इस फअल (हरकत) की यह तोजीह (सफाई ) बयान करते हैं कि हम तो सिर्फ  इसकी इबादत (पूजा, उपासना) इसलिए करते हैं कि वे अल्लाह तक हमारी रसाई (पहुंच) करा दें। अल्लाह यकीनन उनके दरमियान फैसला कर देगा जिनमें वे इख्तिलाफ कर रहे हैं। अल्लाह किसी भी ऐसे आदमी को हिदायत (सही रास्ते की समझ) नहीं देता जो झूठा और मुनकिर (इंकार करने वाला) हो।
                                                                        जुमर  39 : 3
आखिर उस शख्स से ज्यादा बहका  हुआ इंसान और कौन होगा जो अल्लाह को छोड़कर उनको पुकारे जो कयामत तक उसे जवाब नहीं दे सकते, बल्कि इससे भी बेखबर कि पुकारने वाले उनको पुकार रहे हैं। और जब तमाम इंसान इकट्ठे किए जाएंगे जो उस समय वे अपने पुकारने वालों के दुश्मन और उनकी इबादत के मुनकिर (इनकार करने वाले) होंगे ।
                                                                     अहकाफ  46: 5-6
           
अगर उन्हें (मरे हुए लोगों को) पुकारो तो वे तुम्हारी दुआएं (प्रार्थना) सुन नहीं सकते और सुन लें तो उनका तुम्हें कोई जवाब नहीं दे सकते और कयामत के दिन वे तुम्हारे शिर्क (अल्लाह की सत्ता, गुण और नाम में किसी दूसरे को शामिल करना) का इनकार कर देंगे।
                                                                     फातिर 35: 14 

और वे दूसरी हस्तियां जिन्हें अल्लाह को छोड़कर लोग पुकारते हैं वे किसी चीज के भी खालिक (पैदा करने वाले, बनाने वाले) नहीं हैं। मुर्दा हैं ना कि जिन्दा और उनको कुछ मालूम नहीं हैं कि उन्हें कब (दुबारा जिन्दा करके) उठाया जाएगा ।
                                                                         नहल 16: 20-21 

और जिन्दे और मुर्दे हरगिज बराबर नहीं हैं। अल्लाह जिसे चाहता है सुनवाता है। मगर (ऐ नबी स. अ. व.)  तुम उन लोगों को नहीं सुनवा सकते जो कब्रों मे दफन किए हुए हैं।
                                                                            फातिर  35: 22 

 यकीनन (यह पक्की बात है) तुम मुर्दों को नहीं सुना सकते।
                                                                                    नमल 27: 80
            (यहां उलमा ने मुर्दों का अर्थ उन लोगों से लिया है जिनकी अन्तर आत्मा मर चुकी है) 
 
कह दीजिए कि, मेरी नमाज और मेरे तमाम मरासीमे अबूदियत (कुरबानी, बंदगी व परस्तिश, वंदना) मेरा जीना और मेरा मरना ,सब कुछ अल्लाह रब्बुल आलमीन के लिए है, जिसका कोई शरीक नहीं। इस बात का मुझे  हुक्म दिया गया है और मैं अल्लाह के फरमाबरदारों में सबसे पहला फरमाबरदार हूँ।
                                                                              अनआम 6: 162-163

तू अल्लाह के साथ कोई दूसरा माबूद (वंदना और पूजने के लायक) न बना वरना मलामत जदा और बे यारो मददगार बैठा रह जाएगा । तेरे रब ने फैसला कर दिया है कि तुम लोग किसी की इबादत न करो मगर सिर्फ  उसकी (रब की)। वाल्दैन (मां बाप) के साथ नेक सुलूक करो । अगर तुम्हारे पास, उनमें से कोई एक, या दोनों बूढ़े  होकर रहें तो उन्हे उफ् तक न कहो न उन्हें झिड़क कर जवाब दो, बल्कि उनसे एहतराम (अदब) के साथ बात करो और नरमी और रहम के साथ उनके सामने पेश आओ, और दुआ किया करो- परवरदिगार उन पर रहम फरमा जिस तरह उन्होंने रहमत व लाड प्यार के साथ मुझे बचपन में पाला था।    
तुम्हारा रब खूब जानता है कि तुम्हारे दिलों में क्या है। अगर तुम सालेह (नेक काम करने वाले) बन कर रहो तो वह ऐसे सब लोगों के लिए दरगुजर (माफ) करने वाला है, जो अपने कसूर पर मुतनब्बे (टोके जाने पर) होकर बंदगी के रवैये की तरफ  पलट आएं । रिश्तेदारों को उनका हक दो और मिसकीन (जरूरतमंद) और मुसाफिर को उसका हक दो। फिजूलखर्ची न करो, फिजूल खर्च लोग शैतान के भाई हैं, और शैतान अपने रब का नाशुक्रा है। अगर उनसे (हाजतमंद, रिश्तेदार और मुसाफिर) तुम्हें बचना हो, इस बिना पर कि अभी तुम अल्लाह की उस रहमत को जिसके तुम उम्मीदवार हो, तलाश कर रहे हो तो उन्हें नरम जवाब दे दो ।
न तो अपना हाथ गरदन से बांधे रखो, न उसे बिलकुल खुला छोड़ दो कि मलामत जदा और आजिज बनकर रह जाओ । तेरा रब जिसके लिए चाहता है तंगी (कमी) कर देता है वह अपने बंदों के हाल से बाखबर है और उन्हें देख रहा है। अपनी औलाद को गरीबी के डर से कत्ल न करो। हम उन्हें भी रिज्क (धन, कमाई) देंगे और तुम्हें भी। हकीकत में उनका कत्ल बड़ी गलती है। जिना (व्यभिचार) के करीब न भटको वह बहुत बुरा काम है। और बड़ा ही बुरा रास्ता है। किसी आदमी को कत्ल न करो , जिसे अल्लाह ने हराम किया है, मगर हक के साथ। जो मजलूम (जिस पर जुल्म किया जाए) कत्ल किया गया हो उसके वारिस को हमने कसास (बदला, मौत के बदले मौत) लेने का हक दिया है। पस चाहिए कि वह कत्ल में हद से न निकले। उसकी मदद की जाएगी। यतीम के माल के पास न फटको, मगर हुस्न तरीके से यहां तक कि वह अपनी जवानी को पहुंच जाए। अहद (वादे) की पाबंदी करो, बेशक वादे के बारे में तुमको जवाब देना पड़ेगा । नाप से दो तो पूरा कर दो और तोलो तो ठीक तराजू से तोलो। और अंजाम (परिणाम) के लिहाज से यह बेहतर तरीका है। किसी ऐसी चीज के पीछे न लगो जिसका तुम्हें ज्ञान (इल्म) न हो। यकीनन, आंख, कान और दिल सब ही से पूछताछ होगी। जमीन पर अकड़कर न चलो, तुम न जमीन को फाड़ सकते हो न पहाड़ों की ऊंचाई को पहुंच सकते हो। इन मामलों में से हर एक का बुरा पहलू तेरे रब के नजदीक नापसंदीदा है। यह अक्लमंदी की बातें हैं जो तेरे रब ने तुझ पर वही (अल्लाह का संदेश पैगम्बर को) की हैं।
                                                     बनी इस्राइल  17: 22-39

और जो ईमान लाएंगे और नेक अमल करेंगे उनके लिए मगफिरत (कयामत के दिन माफी) और बड़ा अज्र (बदला) है।
                                                     फातिर  35: 7

ये लोग अल्लाह के सिवाय जिनको पुकारते हैं  उनको गालियां न दो, कहीं ऐसा न हो कि यह भी जिहालत ( अज्ञानता ) में हद से बढ जाएं और अल्लाह को गालियां देने लगे।
                                                     अनआम  6 : 108 

कह दीजिए कि मेरी नमाज, मेरी कुरबानी, मेरा जीना और मेरा मरना सब कुछ संसार के मालिक के लिए है उसका कोइ शरीक नहीं, इस बात का मुझे हुक्म दिया गया है और मैं (मुहम्मद स. अ. व.) अल्लाह के फरमाबरदारों में सबसे पहला फरमाबरदार (आज्ञाकारी) हूं।
                                                   अनआम 6: 162-163

सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मजबूती से पकड़ लो और मतभेद में मत उलझो।
                                              आले इमरान 3: 103

अल्लाह और उसके रसूल के कहने पर चलो और आपस में लड़ो झगड़ो नहीं वरना तुम कमजोर पड़ जाओगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी।
                                                      अनफाल- 8: 46

तुम (ईमान वाले) बेहतरीन उम्मत (समुदाय) हो जो सारे इंसानों के लिए पैदा की गई है। तुम भलाई का हुक्म देते हो और बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर पूर्ण (कामिल) ईमान रखते हो।
                                                       आले इमरान 3: 110

तुम पर फर्ज किया गया है कि जब तुम में से किसी की मौत का वक्त आए और वह कुछ माल छोड़ रहा हो तो वह वाल्दैन और रिश्तेदारों के लिए भले दस्तूर (रिवाज) के मुताबिक वसीयत करे। अल्लाह से डरने वालों पर यह एक हक है ।
                                                               बकर 2: 180

पैगम्बर व रसूल


हमने हर उम्मत (कौम, गिरोह, समाज)  में रसूल भेजा।
और उनके जरिए से सबको खबरदार कर दिया
कि अल्लाह की बंदगी (वंदना) करो
और  तागूत की बंदगी से बचो।
(तागूत-देवता और नेता जो इंसान और ईश्वर के बीच में खड़े होकर  इंसान को बुराई की तरफ  ले जाए -शैतान और बुराई की शक्तियां)
                                                 नहल  16: 36

शुरु में सब लोग एक ही तरीके पर थे ।
(फिर हालत बाकी न रही और विभिन्न मत पैदा हो गए)
तब अल्लाह ने नबी भेजे जो सच्चाई पर खुशखबर
देने वाले और डराने वाले बनाकर भेजे गए
और उनके साथ सच्ची किताबें उतारी
ताकि सच के बारे में लोगों के दरमियान जो विभिन्न मत हैं उनका फैसला करे। मतभेद उन लोगों ने किया जिन्हें सच का ज्ञान दिया जा चुका था।
उन्होंने रोशन (साफ -साफ  दिखने वाली) हिदायत
के बाद सच को सिर्फ  इसलिए छोड़ दिया ताकि अलग अलग तरीके
निकालें क्योंकि वे आपस मे ज्यादती करना चाहते थे।
पस जो पैगम्बरों पर ईमान (विश्वास) ले आए
उन्हें अल्लाह ने अपने हुक्म से
उस सच्चाई का रास्ता दिखाया जिसमें
लोगों ने मतभेद किया था।
अल्लाह जिसे चाहता है सच्चा रास्ता दिखा देता है।
                                                              बकर 2: 213

उनके रसूलों ने उनसे कहा-वाकई हम कुछ नहीं है मगर तुम्हीं जैसे इंसान,
लेकिन अल्लाह अपने बंदो में से जिसको चाहता है नवाजता है।
                                                                    इब्राहीम  14: 11

जिसने रसूल (स.अ.व.) की इताअत (फरमाबरदारी) की
उसने दरअसल अल्लाह की इताअत की।
                                                                      निसा 4: 80

जो कुछ रसूल (स.अ.व.) तुम्हें दे वो ले लो
और जिस चीज से तुम्हें रोक दे रुक जाओ।
अल्लाह से डरो, अल्लाह सख्त सजा देने वाला है।
                                                                   हश्र 59: 7

ऐ मोहम्मद (स.अ.व.), तुम्हारे रब की कसम ये कभी मोमिन नहीं हो सकते जब तक अपने आपसी मतभेद में ये तुमको फैसला करने वाला न मान लें, फिर जो कुछ तुम फैसला करो उस पर अपने दिलों में भी कोई तंगी महसूस न करें, बल्कि सर झुका  दें  (यानी दिल से मंजूर कर लें)
                                                                   निसा 4: 65

 मुसलमानों कहो: हम ईमान लाए अल्लाह पर और उस हिदायत पर जो हमारी तरफ नाजिल (उतरी) हुई है और जो इब्राहीम, इस्माइल, इसहाक, याकूब और याकूब की औलाद की तरफ  नाजिल हुई थी, और जो मूसा और ईसा और दूसरे पैगम्बरों को उनके रब की तरफ  से दी गई थी। हम उनके दरमियान कोई फर्क नहीं करते। और हम अल्लाह के फरमाबरदार हैं।
                                                              बकर  2: 136

और हमने  जिस रसूल को भी भेजा इसीलिए भेजा कि अल्लाह के हुक्म के तहत उसकी   इताअत (उसके कहने के मुताबिक काम करना) की जाए ।
                                                                 निसा  4: 64 

अलीफ  लाम  रा -एक सूरह है, यह हमने आपकी तरफ  उतारी है ताकि आप लोगों को अलग-अलग तरह के अँधेरों से निकालकर रोशनी में लाएं, उनके परवरदिगार के हुक्म से, जबरदस्त और तारीफ  वाले अल्लाह की तरफ ।
और हमने आपकी तरफ  यह जिक्र (कुरआन) नाजिल किया है ताकि आप लोगों को वह तालीम (शिक्षा) खोल-खोल कर समझा दें जो उनके लिए नाजिल की गई है और ताकि वो लोग खुद भी सोचें और समझें  ।
                                                                नहल  16: 44

और हमने आप (स.अ.व.) को तमाम आलम के लिए रहमत ही बनाकर भेजा है।                    
                                                            अम्बिया  21: 107

बेशक अल्लाह के रसूल की जिंदगी तुम्हारे लिए पैरवी का बेहतरीन नमूना है।
                                                         अहजाब 33: 21

ईमानवालो अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करो और हुक्म सुनने के बाद उसकी रूगरदानी (अवज्ञा) न करो ।
                                                    अनफाल 8: 20

ऐ रसूल। लोगों से कह दीजिए, अगर तुम सच में अल्लाह से मोहब्बत करते हो तो मेरी पैरवी करो। अल्लाह तुम्हें अपना प्रिय बनाएगा। तुम्हारी गलतियां माफ कर देगा। और अल्लाह बहुत ही माफ  करने वाला है और बड़ा ही मेहरबान है।
                                                 आले इमरान 3: 31 

नबी मुसलमानों के लिए अपनी जानों से बढ़कर है।
                                                   अहजाब 33: 6

और (देखो) किसी मोमिन मर्द और औरत को अल्लाह और उसके रसूल (स.अ.व.) के फैसले के बाद अपने किसी मामले में कोई इख्तियार बाकी नहीं रहता। (याद रखो) अल्लाह और उसके रसूल की जो भी नाफरमानी करेगा वह साफ  गुमराही में पड़ेगा।
                                                    अहजाब 33: 36

पस जो लोग इस रसूल पर ईमान ले आएं, उसकी मदद और हिमायत करें और उस रोशनी की पैरवी करें जो उनके साथ उतारी गई है। वही लोग कामयाबी पाने वाले हैं।
                                                       आराफ  7:157
और जो अल्लाह और रसूल की इताअत करेगा वह उन लोगों के साथ होगा, जिन पर अल्लाह ने इनाम फरमाया है। यानी अम्बिया (पैगम्बरों), सिद्दीकीन (सच्चे लोग) और शहीदों और सालेहीन (नेक काम करने वाले)। और क्या ही खूब है उन लोगों की संगत, यह है वास्तविक (सच्चा, हकीकत) इनाम (फजल) जो अल्लाह की तरफ  से मिलता है और हालांकि सच्चाई जानने के लिए अल्लाह का इल्म (ज्ञान) काफी है।
                                                                        निसा 4: 69-70

हमने आपको तमाम इन्सानों के लिए बशारत (खुशखबर) देने वाला और होशियार करने वाला बनाकर भेजा है।
                                                                            सबा 34:28

मोहम्मद (स.अ.व.) तुममें से किसी के बाप नहीं है। वो तो अल्लाह के रसूल और आखरी नबी हैं।
                                                                           अहजाब 33: 40
हमने अपने रसूल को खुली (वाजेह) निशानियाँ देकर भेजा और उनके साथ कुरआन (मार्ग दिखाने वाली किताब ) मीजाने अदल (इंसाफ  की तराजू) उतारी ताकि लोग इंसाफ  पर कायम हों।
                                                                                  हदीद 57: 25
वही है जिसने अपने रसूल को हिदायत (कुरआन) और दीने हक (सच्चा दीन) के साथ भेजा, ताकि वह उसको जीवन की तमाम व्यवस्था (निजाम) पर गालिब कर दे।
                                                                                        फतह 48: 28

अल्लाह और उसके फरिश्ते नबी (स.अ.व.) पर दुरूद भेजते हैं ऐ लोगो जो ईमान ले आए हो तुम भी उन पर दुरूद व सलाम भेजो ।
                                                                          अहजाब 33: 56

तुम नेकियों का हुक्म देते हो और बुराइयों से रोकते हो।
                                                                          आले इमरान 3: 110

ऐ नबी ! हमने आपको हक की गवाही देने वाला, नेकी पर खुशखबरी देने वाला और बुराई के बुरे परिणाम (अंजाम) से डराने वाला और अल्लाह की तौफीक (प्रेरणा) और हुक्म से अल्लाह की तरफ  बुलाने वाला और रोशन चिराग (दीप) बनाकर भेजा है।
                                                                      अहजाब 33: 44-45

और हमने आपको तमाम आलम (जगत) के लिए रहमत बनाकर भेजा है।
                                                                             अंबिया 21: 107

जिसने रसूल की इताअत की उसने अल्लाह की इताअत की ।
                                                                                   निसा 4: 80 
 

22.8.11

अल्लाह


कहो, वो अल्लाह है यकता (एक ही है)।
अल्लाह सबसे बेनियाज (वह किसी का मोहताज नही,
जो बालातर है, जो लाजवाब हो, जो कामिल हो
ऐसे गुणों  में सबसे ऊँचा)है
सब उसके मोहताज हैं ।
न उसकी कोई औलाद है
न वह किसी की औलाद।
और कोई उसका हमसर (मानिंद,
रुतबे में बराबर) नहीं है ।
                                                             इखलास 112: 1-4 

अल्लाह वह जिंदा ए जावेद (हमेशा रहने वाला) हस्ती,
जो तमाम कायनात को संभाले हुए है ।
उसके सिवाय कोई पूजने (इबादत) के लायक नहीं है,
वह न सोता है,
और न उसे ऊंघ आती है ।
जमीन और आसमानों में जो कुछ हैं
उसी का है ।
कौन है जो उसकी जनाब में उसकी इजाजत के बगेर सिफारिश कर सके ।
जो कुछ बंदों के सामने है, उसे भी वह जानता है
और जो कुछ ओझल है उससे भी वह वाकिफ (जानकार) है।

और उसकी मालूमात में से कोई चीज उनके काबू में
नहीं आ सकती अलावा कि किसी चीज का
इल्म (ज्ञान) वह खुद ही उनको देना चाहे,
उसकी हुकूमत आसमानों और जमीन पर छाई हुई है
और उसकी निगहबानी उसके लिए कोइ थका देने वाला काम नहीं है ।
बस वही एक बुजुर्ग व बरतर हस्ती है ।
                                                                 बकर 2: 255 

दाने और गुठली को फाडऩे वाला अल्लाह है
वही जिंदा को मुर्दा से निकालता है।
और वही मुर्दा को जिंदा से खारिज करने वाला है ।
ये सारे काम करने वाला अल्लाह है ।
फिर तुम किधर बहके चले जा रहे हो?
रात का परदा चाक करके वही सुबह निकालता है ।
उसी ने रात को सुकून का वक्त बनाया है ।
उसी ने चांद और सूरज के तुलूअ (उगने) और
गुरूब (छिपने) का हिसाब मुकर्रर (तय) किया है ।
ये सब उसी जबरदस्त कुदरत (ताकत) और इल्म रखने वाले के ठहराए हुए अंदाजे हैं।
और वही है जिसने तुम्हारे लिऐ तारों को सहरा, जंगल और समन्दर के अंधेरों में रास्ता मालूम करने का जरिया बनाया है।
देखो हमने निशानियां खोल कर बयान कर दी हैं
उन लोगों के लिए जो इल्म रखते हैं।
और वही है जिसने एक जान से तुमको पैदा किया
फिर हर एक के लिए ठहरने की जगह है।
और एक उसको सौंपे (मिट्टी में) जाने की,
ये निशानियां हमने वाजेह (खोलकर बता दी) कर दी हैं।
उन लोगों के लिए जो समझबूझ रखते हैं।
और वही तो है जिसने आसमान से पानी बरसाया।  
फिर  उसके जरिए से हर किस्म की हरियाली उगायी ।
फिर उससे हरे भरे खेत और पेड़ पैदा किए।
फिर उन पर तह पर तह चढ़े दाने निकाले।
और खजूर के शगूफों से फलों के गुच्छे के गुच्छे पैदा किए ।
जो बोझ के मारे झुक पड़ते हैं।
और अंगूर, जैतून और अनार के बाग लगाए।
जिनके फल एक दूसरे से मिलते जुलते हैं
और फिर हर एक की खासियत (गुण) अलग -अलग भी है।
ये दरख्त जब फलते हैं तो उनमें फल आने
और फिर उनके पकने की कैफियत पर जरा गौर करो,
उन चीजों में निशानियाँ हैं  उन लोगों के लिए जो ईमान लाते हैं।

इस पर भी लोगों ने जिनों को अल्लाह का शरीक ठहरा दिया,
हालांकि वह उनका खालिक (पैदा करने वाला) है।
और जानबूझकर उसके लिए बेटे और बेटियां बना दी,
हालांकि वह पाक है, बालातर (ऊपर) है उन बातों से जो ये लोग कहते हैं।
वह तो आसमान और जमीन को बनाने वाला है।
उसका कोइ बेटा कैसे हो सकता है जबकि उसका जीवनसाथी ही नहीं है।
उसने हर चीज को पैदा किया है ।
और वह हर चीज का इल्म रखता है।
यह है अल्लाह तुम्हारा रब।
कोइ उसके सिवाय पूजने लायक नहीं है ।              
वह हर चीज को पैदा करने वाला है।
इसलिए तुम उसकी बंदगी (वंदना, पूजा) करो।
वह हर चीज का निगरां (कारसाज) है।
निगाहें उसको नहीं पा सकती
और वह निगाहों को पा लेता है।
और वही बड़ा बारीक बीं (सूक्ष्मदर्शी) बा खबर है।
                                                         अनआम 6: 95-103 

कहो- या अल्लाह ! मुल्क के मालिक !
तू जिसे चाहे हुकूमत दे
और जिससे चाहे छीन ले ।
जिसे चाहे इज्जत बख्शे
और जिसे चाहे ज़लील कर दे।
भलाई तेरे ही हाथ में है।
और बेशक तू हर चीज पर कादिर है।
रात को दिन में पिरोता हुआ ले आता है
और दिन को रात में ।
बेजान में से जानदार को निकालता है
और जानदार में से बेजान को
और जिसे चाहता है बेहिसाब
रिज्क दे देता है।
                                                        आले इमरान 3: 26-27

अल्लाह नूर (प्रकाश, रोशनी) है आसमानों और जमीन का,
उसके नूर की मिसाल ऐसी है जैसे एक ताक
जिसमें चिराग (दीप)हो,
और चिराग शीशे (कांच) के गोले में रखा हो
और शीशा चमकते हुए तारे की तरह हो,
वह चिराग एक बाबरकत (मुबारक) दरख्त जैतून के तेल से जलाया जाता हो,
जो दरख्त न पूर्वी न पश्चिमी (किसी ऊंची और खुली रोशन जगह लगा) हो,
करीब है कि वह तेल अपने आप ही रोशनी देने लगे अगर चे आग उसे न छुए।
(इस तरह) नूर पर नूर है। (रोशनी पर रोशनी)
अल्लाह अपने नूर (रोशनी) की तरफ  रास्ता दिखाता है जिसे चाहे,
लोगों को (समझाने के लिए) ये मिसालें अल्लाह बयान फरमा रहा है।
और अल्लाह हर चीज के हाल को अच्छी तरह जानता है।
(उसके नूर की तरफ  हिदायत पाने वाले) उन घरों मे पाए जाते हैं,
जिन्हें बुलन्द करने का और जिनमें अपने नाम को
जपने का अल्लाह ने हुक्म दिया है
वहां सुबह शाम अल्लाह की तसबीह (जप, नमाज आदि) बयान करते हैं।
ऐसे लोग जिन्हें तिजारत और खरीदना-बेचना
अल्लाह की याद से और नमाज कायम करने
और जकात अदा करने से गाफिल (लापरवाह) नहीं करते।
उस दिन (कयामत) से डरते हैं।
जिस दिन बहुत से दिल और बहुत सी आँखें पथरा जाएंगी।
वह सब कुछ  इसलिए करते हैं ताकि अल्लाह उनके बेहतरीन आमाल (बेहतर कर्म) का बदला उनको दे,
बल्कि अपने फजल (मेहरबानी) से और ज्यादा दे,
अल्लाह जिसे चाहे बेहिसाब रिज्क (धन) देता है।
और काफिरों (इनकार करने वालों) के आमाल (कर्म) की
मिसाल ऐसी है जैसे चटियल मैदान में रेत,
जिसे प्यासा आदमी दूर से पानी समझता है
लेकिन जब उसके पास पहुंचता है तो उसे कुछ भी नहीं पाता है, बल्कि वहां उसने अल्लाह को पाया, जो उसका हिसाब पूरा पूरा चुका देता है,
अल्लाह बहुत जल्द हिसाब कर देने वाला है।

या फिर उसकी मिसाल ऐसी है जैसे एक गहरे समन्दर में अंधेरे के ऊपर एक मोज (लहर) छाई हुई है,उस पर एक और मौज
और उसके ऊपर बादल, अंधेरे पर अंधेरा चढा़ है।
आदमी अपना हाथ निकाले तो उसको देखने न पाए।
जिसे अल्लाह रोशनी (हिदायत) न बख्शे
उसके लिए फिर कोई नूर (हिदायत) नहीं।
क्या तुम देखते नहीं हो कि अल्लाह की तसबीह कर रहे हैं,
वे सब जो आसमानों और जमीन में हैं,
और वो परिन्दे जो पंख फैलाए उड़ रहे हैं।
हर एक अपनी नमाज और तसबीह का तरीका जानता है,
और ये सब कुछ जो करते हैं अल्लाह उससे बाखबर रहता है।

आसमानों और जमीन की बादशाही अल्लाह ही के लिए है
और उसकी तरफ  सबको पलटना (लौटना) है।

क्या तुम देखते नहीं हो कि अल्लाह बादल को धीरे-धीरे चलाता है,
फिर उसके टुकडों को एक दूसरे के साथ जोड़ता है,
फिर उसे समेटकर बादलों की तह बा तह बना देता है
फिर तुम देखते हो कि उसके खोल में से बारिश की बूंदें टपकती चली आती हैं
और वह आसमान से उन पहाडों जैसे बुलन्द बादलों से ओले बरसाता है,
फिर जिसे चाहता है उसे नुकसान पहुंचता है
और जिसे चाहता है बचा लेता है।
उसकी बिजली की चमक ऐसी होती है कि आँखों की रोशनी चली।
अल्लाह ही रात और दिन का उलट फेर कर रहा है
उसमें एक सबक (पाठ) है आँखों वालों के लिए।

और अल्लाह ने हर जानदार को एक तरह के पानी से पैदा किया।
कोइ पेट के बल चल रहा है तो कोई दो टांगो पर, और कोई चार टांगो पर ।
जो कुछ चाहता है वह पैदा करता है ।
वह हर चीज पर कादिर (समर्थ) है।
                                                                                               नूर 24: 35-45 
 
वह अल्लाह ही है जिसके सिवाय कोई माबूद (पूजा के लायक) नहीं ।
गायब और जाहिर हर चीज का जानने वाला
वही रहमान और रहीम है।
वह अल्लाह ही है जिसके सिवाय कोई माबूद नहीं।
वह बादशाह है, मुकद्दस (पाक जात)
सरासर सलामती, अमन देने वाला, निगहबान, सब पर गालिब
अपना हुक्म ताकत के साथ लागू करने वाला और सदा बड़ा ही होकर रहने वाला,
पाक है अल्लाह उस शिर्क से जो लोग कर रहे हैं।
वह अल्लाह ही है जो तखलीक (पैदा करना)
की योजना बनाने वाला और उसको लागू करने वाला है।
उसके लिए सबसे अच्छे नाम हैं।
हर चीज जो आसमानों और जमीन में है उसी की तसबीह कर रही है ।
और वह जबरदस्त और हकीम (तत्वदर्शी) है ।
                                                                                         हश्र  59: 22-24
कभी ऐसा नहीं होता कि तीन आदमी कानाफूसी कर रहे हों
और उनके बीच में चौथा अल्लाह न हो, या पांच आदमियों में कानाफूसी हो और उनके अंदर छठा अल्लाह न हो। खुफिया बात करने वाले भले इससे कम हैं या ज्यादा जहां कहीं भी हो अल्लाह उनके साथ होता है। फिर कयामत के दिन वह उनको बता देगा कि उन्होंने
क्या कुछ किया है। अल्लाह हर चीज का इल्म रखता है।
                                                                                   मुजादला   58: 7

20.8.11

कुरआन, कुरआन की जुबानी

अलफातिहा

अल्लाह के नाम से जो बेइंतेहा मेहरबान और रहम करने वाला है।

तारीफ अल्लाह ही के लिए है जो तमाम

कायनात (जहानों) का रब है। निहायत मेहरबान

और रहम फरमाने वाला है । रोजे जजा

(इंसाफ का दिन ) का मालिक है । हम तेरी ही

इबादत करते हैं और तुझी से मदद मांगते हैं ।

हमें सीधा रास्ता दिखा, उन लोगों का रास्ता

जिन पर तूने इनाम फरमाया, जो मातूब

(जिन पर गजब किया गया) नहीं हुए, जो

भटके हुए नहीं है ।

'आमीन' (कबूल फरमा)



पहली वही-

पढ़ो अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया।

पैदा किया इंसान को जमे हुए खून की फुटकी से ।

पढ़ो! तुम्हारा रब सब से ज्यादा करीम है!

जिसने इल्म बख्शा कलम से ।

इल्म बख्शा इंसान को जो वह न जानता था।

सूरह अलक 96: 1- 5

दूसरी वही-

ऐ ओढ़ लपेट कर लेटने वाले ।

उठो और खबरदार करो ।

और अपने परवरदिगार की बड़ाई का ऐलान करो ।

और अपने कपड़े पाक रखो ।

और गंदगी से दूर रहो ।

और एहसान न करो ज्यादा हासिल करने के लिए ।

और अपने रब की खातिर सब्र करो ।

मुदस्सर 74: 1 - 7


यह अल्लाह की किताब है

इसमें कोइ शक नहीं ।

हिदायत है उन परहेजगार लोगों के लिए

जो गैब (छिपी हुई बातों) पर ईमान लाते हैं ।

नमाज कायम करते हैं ।

जो रिज्क (धन-दौलत, सामान ) हमने उनको दिया है

उसमें से खर्च करते हैं।

और जो किताब (कुरआन) तुम पर नाजिल (उतारी) की गई

और जो किताबें तुमसे पहले नाजिल की गई थीं

उन सब पर ईमान (मजबूत यकीन, विश्वास) लाते हैं ।

और आखिरत (मरने के बाद कयामत के दिन

हिसाब के लिए उठाया जाना) पर यकीन रखते हैं ।

वही लोग हैं जो अपने रब के सीधे रास्ते पर हैं और वही कामयाबी पाने वाले हैं।

           बकर 2: 2 - 5


हकीकत यह है कि कुरआन वह रास्ता दिखाता है,

जो बिल्कुल सीधा है।

जो लोग इसे मानकर भले काम करने लगे,

उन्हें खुश खबर देता है

कि उनके लिए बड़ा अज्र (बदले में इनाम) है ।

और जो लोग आखिरत को न माने

उन्हें यह खबर देता है कि उनके लिए

हमने दर्दनाक (दुख भरा) अजाब तैयार कर रखा है ।

बनी इस्राईल 17: 9-10

और ऐलान कर दो कि हक (सच) आ गया

और बातिल (झूठ) मिट गया,

बातिल तो मिटने ही वाला है ।

हम इस कुरआन के सिलसिले में

वह कुछ नाजिल (उतार) कर रहे हैं

जो मानने वालों के लिए तो शिफा और रहमत हैं

मगर जालिमों के लिए खसारे (घाटे) के सिवाय

किसी चीज में इजाफा (बढ़ोतरी) नहीं करता

- बनी इस्राईल 17: 81-82



हमने इस (कुरआन) को शबे कद्र में नाजिल किया (उतारा) और तुम क्या जानो कि शबे कद्र क्या है? शबे कद्र हजार महीनों से ज्यादा बेहतर है।
फरिश्ते और रूह (जिब्राइल) इस रात में अपने रब के आदेश से हर हुक्म लेकर उतरते हैं। वह रात सरासर सलामती है तुलुअ फज्र तक।
- कद्र 97: 1-5

जब कुरआन तुम्हारे सामने पढा़ जाए,

तो उसे तवज्जोह (ध्यान) से सुनो,

और खामोश रहो,

शायद कि तुम पर रहमत हो जाए।

- आराफ 7: 204

और इसी तरह यह किताब हमने उतारी है एक बरकत वाली किताब,

पस तुम उसकी पैरवी करो,

और तकवे ( अल्लाह से डर कर परहेजगारी )

की रविश (तरीका)  अपनाओ (इख्तियार करो)

दूर नहीं कि तुम पर रहम (दया) किया जाए।

अनआम 6 : 155


काश उन्होंने तौरात, इंजील और उन दूसरी किताबों

को कायम किया होता जो उनके रब की तरफ से उनके पास

भेजी गई थीं। ऐसा करते तो उनके लिए ऊपर से रिज्क बरसता और नीचे से निकलता।

मायदा 5: 66

और फरमाया (अल्लाह ने) - तुम दोनों (यानी इंसान और शैतान) यहां (जन्नत) से उतर जाओ। और तुम एक दूसरे के दुश्मन रहोगे। अब अगर मेरी तरफ से तुम्हें कोई हिदायत पहुँचे तो जो कोई इस हिदायत की पैरवी करे वह न भटकेगा न बदबख्ती में मुब्तिला होगा। और जो मेरे जिक्र से मुंह मोड़ेगा उसके लिए दुनिया में तंग जिन्दगी होगी और कयामत के दिन हम उसे अंधा उठाएंगे। वह कहेगा 'परवरदिगार दुनिया में तो मैं आंखों वाला था, यहां मुझो अंधा क्यो उठाया ?' अल्लाह फरमाएगा, 'इसी तरह तू हमारी आयात को जबकि वह तेरे पास आई थीं, तूने भूला दिया था। उसी तरह आज तू भूलाया जा रहा है। इस तरह हम हद से गुजरने वाले और अपने रब की आयात न मानने वाले को (दुनिया) में बदला देते हैं और आखिरत का अजाब ज्यादा सख्त और ज्यादा देर रहने वाला है।'
ताहा 20: 123-127