मगर जो लोग सूद (ब्याज) खाते हैं उनका हाल उस आदमी का सा होता है जिसे शैतान ने छूकर बावला कर दिया हो। और इस हालत में उनके शामिल होने की वजह यह है कि वे कहते हैं 'तिजारत (व्यापार) भी तो ब्याज ही जैसी चीज है' हालांकि अल्लाह ने व्यापार को हलाल किया है और ब्याज को हराम (अवैध, कानून के विरूद्ध) ठहराया है। इसलिए जिस आदमी को उसके रब की तरफ से यह नसीहत पहुंचे और वह ब्याज खाने से बाज (रुक) आ जाए तो जो कुछ पहले खा चुका सो खा चुका उसका मामला अल्लाह के हवाले है, और जो इस हुक्म के बाद फिर यही कर्म किया तो वह जहन्नुमी है जहां वह हमेशा रहेगा। अल्लाह सूद (ब्याज) को घटाता है और दान (सदकात) को बढ़ाता है। ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, अल्लाह से डरो, और जो कुछ तुम्हारा ब्याज लोगों पर बाकी रह गया है, उसे छोड़ दो अगर सच में ईमान लाए हो। लेकिन अगर तुम ने ऐसा नहीं किया तो जान लो कि अल्लाह और उसके रसूल (स.अ.व.) की तरफ से तुम्हारे खिलाफ जंग का ऐलान है। और अगर तौबा (अल्लाह से माफी) कर लो तो अपना मूलधन लेने का तुम्हें अधिकार है। न तुम जुल्म करो न तुम पर जुल्म किया जाए। तुम्हारे कर्जदार तंगदस्त (चुकाने की क्षमता न हो) हो तो हाथ खुलने तक उसे मोहलत दो और जो सदका (दान) कर दो तो यह तुम्हारे लिए ज्यादा अच्छा है, अगर तुम समझो।
बकर 2: 275-280
खयानत
और एक दूसरे का माल ना हक न खाया करो, ना हाकिमों (अधिकारियों) को रिश्वत पहुंचा कर किसी का कुछ माल जुल्म व सितम से हड़प लिया करो।
बकर 2: 188
अगर तुम में से कोई व्यक्ति दूसरे पर भरोसा करके उसके साथ मामला करे तो जिस पर भरोसा किया गया है उसे चाहिए कि अमानत अदा करे और अपने रब से डरे और गवाही (शहादत) हरगिज न छिपाओ।
बकर 2: 283
और जो कोई खयानत (उसके पास छोड़ा हुआ माल या वस्तु हड़प ले) करे तो वह अपनी खयानत समेत कयामत के दिन हाजिर हो जाएगा। हर व्यक्ति को उसकी कमाई का पूरा बदला मिल जाएगा।
आले इमरान 3: 161
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें