बेशक सबसे पहली इबादतगाह जो इंसानों के लिए बनाई गई वही है जो मक्का में है। इसको खैरो बरकत दी गई थी और तमाम दुनिया वालों के लिए मार्गदर्शन (हिदायत) के लिए केन्द्र बनाया गया था। इसमें खुली हुई निशानियां हैं। इब्राहीम का इबादत का स्थान है और इसका हाल यह है कि जो इसमें दाखिल हुआ वह (मरते दम तक अल्लाह की फरमाबरदारी और वफादारी पर कायम रहा)। लोगों पर अल्लाह का यह हक है कि जो इस घर तक पहुँचने की ताकत रखता हो तो उस घर (काबा) का हज करे, और जो कोई इस हुक्म की पैरवी से इन्कार करे तो उसे मालूम होना चाहिए कि अल्लाह तमाम दुनिया वालों से बेनियाज है।
आले इमरान 3: 96-97
हज के चंद महीने हैं जो सबको मालूम है।
बकर 2: 197
और सिर के बाल उस समय तक न मुण्डवाओ जब तक कुरबानी का जानवर अपने ठिकाने पर न पहुँच जाए ।
बकर 2: 196
इसमें कोई हर्ज नहीं कि तुम हज के साथ-साथ अपने परवरदिगार का फजल तलाश करो।
बकर 2: 198
और चाहिए कि पुराने घर (काबा) का तवाफ (सात बार परिक्रमा) करे ।
हज 22: 29
फिर जब अराफात (जगह का नाम) से लौटो तो मुजलदफा के पास ठहर कर अल्लाह को याद करो।
बकर 2: 198
इसमें शक नहीं कि सफा व मरवा (पहाडिय़ों के नाम) अल्लाह की निशानियों में से हैं। पस जो शख्स अल्लाह के घर का हज करे या उमरा करे कोई गुनाह की बात नहीं कि वह इन दोनों पहाडिय़ों के बीच फेरा लगाए ।
बकर 2: 158
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