ऐ ईमान लाने वालो! ईमान (पक्का यकीन ) लाओ अल्लाह पर, और उसके पैगम्बर पर और उस किताब पर जो उसने अपने पैगम्बर पर उतारी है और हर उस किताब पर जो उससे पहले वो उतार चुका है। और जिसने अल्लाह और उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और उसके पैगम्बरों और आखिरी दिन से इनकार किया तो वह भटककर बहुत दूर निकल गया
निसा 4: 136
जो लोग गैब (छिपी हुई बातें, जो इंसानी दिमाग से परे है) पर ईमान लाते हैं, और नमाज कायम करते हैं, और जो माल हमने दिया उसमें से खर्च करते हैं (नेक कामों में) और जो ईमान लाते हैं जो आपकी तरफ उतारा गया, और जो आपसे पहले उतारा गया, और वे आखिरत (परलोक) पर भी यकीन रखते हैं। यही लोग अपने रब की हिदायत पर हैं, और यही लोग कामयाब हैं।
बकर 2: 3-5
ये सब अल्लाह और उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और रसूलों को मानते हैं और उनका कहना यह है कि हम अल्लाह के रसूलों को एक दूसरे से अलग नहीं करते । हमने सुना और इताअत कबूल की, मालिक हम तुझसे माफी चाहते हैं और हमें तेरी ही तरफ पलटना है।
बकर 2: 285
नेकी यह नहीं है कि तुमने अपने चेहरे मशरिक (पूरब) या मगरिब (पश्चिम) की तरफ कर लिए, बल्कि नेकी तो हकीकत में उस शख्स की नेकी है, जो ईमान लाए (दिल से मानें) -
1 अल्लाह पर
2 आखिरत के दिन पर
3 फरिश्तों पर
4 किताबों पर और
5 पैगम्बरों पर
और अल्लाह की मोहब्बत में अपना मनपसन्द माल रिश्तेदारों और यतीमों पर, मिस्कीनों और मुसाफिरों, मदद के लिए हाथ फैलाने वालों, और गुलामों की रिहाई पर खर्च करें, नमाज कायम करें और जकात दें। और नेक लोग वे हैं कि जब अहद (वादा) करे तो उसे पूरा करे और तंगी और मुसीबत के वक्त में और सच और झूठ की लड़ाई में सब्र करे, यही हैं सच्चे लोग और यही लोग अल्लाह से डरने वाले (पाप से परहेज करने वाले) हैं।
बकर 2: 177
तुम्हारा माबूद (जिसकी उपासना या पूजा की जाए) अकेला माबूद है। उस मेहरबान और दयावान के सिवाय कोई माबूद नहीं ।
बकर 2: 163
जमाने की कसम, इन्सान हकीकत में घाटे में है सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और नेक अमल (कर्म) करते रहे, और एक दूसरे को हक की नसीहत और सब्र की वसीयत (ताकीद) करते रहे।
अस्र 103: 1-3
तुम्हारे लिए अल्लाह के पैगम्बर बेहतरीन नमूना (आदर्श) हैं, यानी उसके लिए जो अल्लाह और आखरी दिन की उम्मीद रखता हो और अल्लाह को बहुत याद करे।
अहजाब 33: 21
कहो, ऐ इन्सानो ! मैं तुम सबकी तरफ उस अल्लाह का पैगम्बर हूँ जो जमीन और आसमानों का मालिक है। उसके सिवाय कोई अल्लाह नहीं है। वही जिंदगी देता है और वही मौत देता है। पस ईमान लाओ अल्लाह पर और उसके भेजे हुए उम्मी (जो पढ़े लिखे नहीं है) नबी पर जो अल्लाह के हुक्म मानता है, और पैरवी करो उसकी, उम्मीद है कि तुम सच्चा रास्ता पा लोगे ।
आराफ 7: 158
अल्लाह की मस्जिदों को आबाद करने वाले तो वही लोग हो सकते हैं जो अल्लाह और आखिरत के दिन को मानें और नमाज कायम करें, जकात दें, और अल्लाह के सिवाय किसी से न डरें । उन्हीं से उम्मीद है कि वे सीधे रास्ते चलेंगे ।
तौबा 9: 18
ऐ नबी (स.अ.व.) उनसे कहो कि आओ मैं तुम्हे बताऊं तुम्हारे रब ने क्या पाबंदियां लागू की हैं,
यह कि :
1 उसके (रब के) साथ किसी को शरीक न करो ।
2 और वाल्दैन (मां बाप) के साथ नेक सलूक करो ।
3 और अपनी संतान को गरीबी की वजह से कत्ल न करो। हम तुम्हें भी रिज्क (रोजी रोटी) देते हैं और उनको भी देंगे।
4 और बेशर्मी की बातों के करीब भी न जाओ, चाहें वे खुली हों या छिपी।
5 और किसी जान को जिसे अल्लाह ने मोहतरम (इज्जत के काबिल) ठहराया है हलाक न करो मगर हक के साथ। यह बातें हैं जिनकी हिदायत उसने तुम्हें की है शायद कि समझबूझ से काम लो ।
6 और यह कि यतीम के माल के करीब न जाओ मगर ऐसे तरीके से जो बेहतरीन हो, यहां तक कि वह बालिग हो जाए।
7. और नाप तोल में पूरा इंसाफ करो। हम हर आदमी पर जिम्मेदारी का उतना ही बोझ रखते हैं जितनी उसकी ताकत है।
8. और जब बात कहो तो इंसाफ की कहो, भले ही मामला अपने रिश्तेदारों का ही क्यों न हो ।
9. और अल्लाह से किए गए अहद (करार) को पूरा करो। इन बातों की हिदायत अल्लाह ने तुम्हें की है, शायद कि तुम नसीहत कबूल करो।
10. इसके साथ यह हिदायत है कि यही मेरा सीधा रास्ता है, इसलिए तुम उस पर चलो और दूसरे रास्तों पर न चलो कि वे उसके (अल्लाह के रास्ते) से हटाकर तुम्हें गुमराह कर देंगे। यह वह हिदायत है जो तुम्हारे रब ने तुम्हें की है, शायद कि तुम बुरे कामों से बचो ।
अनआम 6 : 151-153
और रात और दिन और सूरज और चाँद उसकी निशानियों में से हैं। तुम लोग न तो सूरज को सजदा (आदर और वंदना में जमीन पर माथा टेकना) करो, न चाँद को बल्कि अल्लाह ही को सजदा करो, जिसने इन तमाम चीजों को पैदा किया है।
हा मीम सजदा 41: 37
हम तेरी ही इबादत (उपासना, पूजा) करते हैं और तुझी से मदद चाहते हैं।
फातिहा 1: 4
अगर अल्लाह तुम्हारा मददगार हो तो तुम पर कोई गालिब (नियंत्रण, विजय) नहीं आ सकता। अगर वह तुम्हें छोड़ दे तो फिर कौन हो सकता है जो इसके बाद, तुम्हारी मदद करे? और मोमिनों को अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिए ।
आले इमरान 3: 160
लोगो! उसी की पैरवी (अनुसरण) करो जो तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम पर उतरा है। और उसको छोड़कर (अपने मन घडंत) दूसरे सरपरस्तों की पैरवी न करो । मगर तुम बहुत कम नसीहत मानते हो।
आराफ 7: 3
वे लोग जिन्होंने उस (अल्लाह) के सिवाय दूसरे सरपरस्त बना रखे हैं और अपने इस फअल (हरकत) की यह तोजीह (सफाई ) बयान करते हैं कि हम तो सिर्फ इसकी इबादत (पूजा, उपासना) इसलिए करते हैं कि वे अल्लाह तक हमारी रसाई (पहुंच) करा दें। अल्लाह यकीनन उनके दरमियान फैसला कर देगा जिनमें वे इख्तिलाफ कर रहे हैं। अल्लाह किसी भी ऐसे आदमी को हिदायत (सही रास्ते की समझ) नहीं देता जो झूठा और मुनकिर (इंकार करने वाला) हो।
जुमर 39 : 3
आखिर उस शख्स से ज्यादा बहका हुआ इंसान और कौन होगा जो अल्लाह को छोड़कर उनको पुकारे जो कयामत तक उसे जवाब नहीं दे सकते, बल्कि इससे भी बेखबर कि पुकारने वाले उनको पुकार रहे हैं। और जब तमाम इंसान इकट्ठे किए जाएंगे जो उस समय वे अपने पुकारने वालों के दुश्मन और उनकी इबादत के मुनकिर (इनकार करने वाले) होंगे ।
अहकाफ 46: 5-6
अगर उन्हें (मरे हुए लोगों को) पुकारो तो वे तुम्हारी दुआएं (प्रार्थना) सुन नहीं सकते और सुन लें तो उनका तुम्हें कोई जवाब नहीं दे सकते और कयामत के दिन वे तुम्हारे शिर्क (अल्लाह की सत्ता, गुण और नाम में किसी दूसरे को शामिल करना) का इनकार कर देंगे।
फातिर 35: 14
और वे दूसरी हस्तियां जिन्हें अल्लाह को छोड़कर लोग पुकारते हैं वे किसी चीज के भी खालिक (पैदा करने वाले, बनाने वाले) नहीं हैं। मुर्दा हैं ना कि जिन्दा और उनको कुछ मालूम नहीं हैं कि उन्हें कब (दुबारा जिन्दा करके) उठाया जाएगा ।
नहल 16: 20-21
और जिन्दे और मुर्दे हरगिज बराबर नहीं हैं। अल्लाह जिसे चाहता है सुनवाता है। मगर (ऐ नबी स. अ. व.) तुम उन लोगों को नहीं सुनवा सकते जो कब्रों मे दफन किए हुए हैं।
फातिर 35: 22
यकीनन (यह पक्की बात है) तुम मुर्दों को नहीं सुना सकते।
नमल 27: 80
(यहां उलमा ने मुर्दों का अर्थ उन लोगों से लिया है जिनकी अन्तर आत्मा मर चुकी है)
कह दीजिए कि, मेरी नमाज और मेरे तमाम मरासीमे अबूदियत (कुरबानी, बंदगी व परस्तिश, वंदना) मेरा जीना और मेरा मरना ,सब कुछ अल्लाह रब्बुल आलमीन के लिए है, जिसका कोई शरीक नहीं। इस बात का मुझे हुक्म दिया गया है और मैं अल्लाह के फरमाबरदारों में सबसे पहला फरमाबरदार हूँ।
अनआम 6: 162-163
तू अल्लाह के साथ कोई दूसरा माबूद (वंदना और पूजने के लायक) न बना वरना मलामत जदा और बे यारो मददगार बैठा रह जाएगा । तेरे रब ने फैसला कर दिया है कि तुम लोग किसी की इबादत न करो मगर सिर्फ उसकी (रब की)। वाल्दैन (मां बाप) के साथ नेक सुलूक करो । अगर तुम्हारे पास, उनमें से कोई एक, या दोनों बूढ़े होकर रहें तो उन्हे उफ् तक न कहो न उन्हें झिड़क कर जवाब दो, बल्कि उनसे एहतराम (अदब) के साथ बात करो और नरमी और रहम के साथ उनके सामने पेश आओ, और दुआ किया करो- परवरदिगार उन पर रहम फरमा जिस तरह उन्होंने रहमत व लाड प्यार के साथ मुझे बचपन में पाला था।
तुम्हारा रब खूब जानता है कि तुम्हारे दिलों में क्या है। अगर तुम सालेह (नेक काम करने वाले) बन कर रहो तो वह ऐसे सब लोगों के लिए दरगुजर (माफ) करने वाला है, जो अपने कसूर पर मुतनब्बे (टोके जाने पर) होकर बंदगी के रवैये की तरफ पलट आएं । रिश्तेदारों को उनका हक दो और मिसकीन (जरूरतमंद) और मुसाफिर को उसका हक दो। फिजूलखर्ची न करो, फिजूल खर्च लोग शैतान के भाई हैं, और शैतान अपने रब का नाशुक्रा है। अगर उनसे (हाजतमंद, रिश्तेदार और मुसाफिर) तुम्हें बचना हो, इस बिना पर कि अभी तुम अल्लाह की उस रहमत को जिसके तुम उम्मीदवार हो, तलाश कर रहे हो तो उन्हें नरम जवाब दे दो ।
न तो अपना हाथ गरदन से बांधे रखो, न उसे बिलकुल खुला छोड़ दो कि मलामत जदा और आजिज बनकर रह जाओ । तेरा रब जिसके लिए चाहता है तंगी (कमी) कर देता है वह अपने बंदों के हाल से बाखबर है और उन्हें देख रहा है। अपनी औलाद को गरीबी के डर से कत्ल न करो। हम उन्हें भी रिज्क (धन, कमाई) देंगे और तुम्हें भी। हकीकत में उनका कत्ल बड़ी गलती है। जिना (व्यभिचार) के करीब न भटको वह बहुत बुरा काम है। और बड़ा ही बुरा रास्ता है। किसी आदमी को कत्ल न करो , जिसे अल्लाह ने हराम किया है, मगर हक के साथ। जो मजलूम (जिस पर जुल्म किया जाए) कत्ल किया गया हो उसके वारिस को हमने कसास (बदला, मौत के बदले मौत) लेने का हक दिया है। पस चाहिए कि वह कत्ल में हद से न निकले। उसकी मदद की जाएगी। यतीम के माल के पास न फटको, मगर हुस्न तरीके से यहां तक कि वह अपनी जवानी को पहुंच जाए। अहद (वादे) की पाबंदी करो, बेशक वादे के बारे में तुमको जवाब देना पड़ेगा । नाप से दो तो पूरा कर दो और तोलो तो ठीक तराजू से तोलो। और अंजाम (परिणाम) के लिहाज से यह बेहतर तरीका है। किसी ऐसी चीज के पीछे न लगो जिसका तुम्हें ज्ञान (इल्म) न हो। यकीनन, आंख, कान और दिल सब ही से पूछताछ होगी। जमीन पर अकड़कर न चलो, तुम न जमीन को फाड़ सकते हो न पहाड़ों की ऊंचाई को पहुंच सकते हो। इन मामलों में से हर एक का बुरा पहलू तेरे रब के नजदीक नापसंदीदा है। यह अक्लमंदी की बातें हैं जो तेरे रब ने तुझ पर वही (अल्लाह का संदेश पैगम्बर को) की हैं।
बनी इस्राइल 17: 22-39
और जो ईमान लाएंगे और नेक अमल करेंगे उनके लिए मगफिरत (कयामत के दिन माफी) और बड़ा अज्र (बदला) है।
फातिर 35: 7
ये लोग अल्लाह के सिवाय जिनको पुकारते हैं उनको गालियां न दो, कहीं ऐसा न हो कि यह भी जिहालत ( अज्ञानता ) में हद से बढ जाएं और अल्लाह को गालियां देने लगे।
अनआम 6 : 108
कह दीजिए कि मेरी नमाज, मेरी कुरबानी, मेरा जीना और मेरा मरना सब कुछ संसार के मालिक के लिए है उसका कोइ शरीक नहीं, इस बात का मुझे हुक्म दिया गया है और मैं (मुहम्मद स. अ. व.) अल्लाह के फरमाबरदारों में सबसे पहला फरमाबरदार (आज्ञाकारी) हूं।
अनआम 6: 162-163
सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मजबूती से पकड़ लो और मतभेद में मत उलझो।
आले इमरान 3: 103
अल्लाह और उसके रसूल के कहने पर चलो और आपस में लड़ो झगड़ो नहीं वरना तुम कमजोर पड़ जाओगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी।
अनफाल- 8: 46
तुम (ईमान वाले) बेहतरीन उम्मत (समुदाय) हो जो सारे इंसानों के लिए पैदा की गई है। तुम भलाई का हुक्म देते हो और बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर पूर्ण (कामिल) ईमान रखते हो।
आले इमरान 3: 110
तुम पर फर्ज किया गया है कि जब तुम में से किसी की मौत का वक्त आए और वह कुछ माल छोड़ रहा हो तो वह वाल्दैन और रिश्तेदारों के लिए भले दस्तूर (रिवाज) के मुताबिक वसीयत करे। अल्लाह से डरने वालों पर यह एक हक है ।
बकर 2: 180
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