कुफ्र (इनकार) व शिर्क (अल्लाह के साथ किसी को साझी बनाना)
कह दो: ऐ इनकार करने वालो (न मानने वालो) मैं उनकी इबादत (बन्दगी, पूजा) नहीं करता जिनकी इबादत तुम करते हो। न तुम उसकी इबादत करने वाले हो जिसकी इबादत मैं करता हूँ। और न मैं उनकी इबादत करने वाला हूँ जिनकी इबादत तुमने की है और न तुम उसकी इबादत करने वाले हो जिसकी इबादत मैं करता हूँ। तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन और मेरे लिए मेरा दीन।
काफिरून 109 : 1-6
जो लोग अल्लाह के हुक्म व हिदायत को मानने से इन्कार करते हैं और उसके पैगम्बरों को ना हक (बेजा) कत्ल करते हैं और ऐसे लोगों को भी जो अदल व इन्साफ का हुक्म देते हैं, कत्ल करते हैं, ऐसे लोगों को दर्दनाक अजाब की खुशखबरी सुना दो। ये वे लोग हैं जिनके कर्म दुनिया और आखिरत में बेकार गए और कोई भी उनका मददगार नहीं है।
आले इमरान 3: 21-22
अल्लाह उस जुर्म को माफ नहीं करता कि किसी को उसका शरीक (साझी ) ठहराया जाए।
निसा 4: 48
जब लुकमान ने अपने बेटे को नसीहत करते हुए कहा '' प्यारे बेटे अल्लाह के साथ शिर्क बडा़ भारी जुल्म है।
लुकमान 31: 13
और अल्लाह को छोड़कर किसी हस्ती को न पुकारो जो तुझो न फायदा पहुँचा सकती है न नुकसान। अगर तू ऐसा करेगा तो जालिमों मे से होगा
यूनुस 10: 106
ऐ लोगो ! बेशक हमने तुम सबको एक ही मर्द और एक औरत से पैदा किया है और फिर तुम्हारी कोमें और बिरादरियां बना दी ताकि तुम एक दूसरे को पहचानो। हकीकत में अल्लाह के नजदीक तुम में सबसे ज्यादा इज्जत वाला वह है जो तुम्हारे अन्दर सबसे ज्यादा परहेजगार (अल्लाह से डरने वाला) है।
हुजुरात 49: 13
तो क्या तुम किताब (कुरआन) के एक हिस्से पर ईमान लाते हो और दूसरे हिस्से के साथ कुफ्र (इन्कार) करते हो, फिर तुम में से जो लोग ऐसा करें उनकी सजा इसके सिवाय और क्या है कि दुनिया की जिन्दगी में जलील (बेइज्जत) व ख्वार होकर रहें और आखिरत में कठोर से कठोर अजाब (सजा) की तरफ फेर दिए जाएं।
बकर 2: 85
जिन लोगों ने कुफ्र (इनकार) का रवैया अपनाया और कुफ्र की हालत में जान दी, उन पर अल्लाह और फरिश्तों और तमाम इन्सानों की लानत (फटकार) है।
बकर 2: 161
जिसने अल्लाह और उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और आखिरत के दिन (कयामत) से इनकार किया वह गुमराही में भटककर दूर निकल गया।
निसा 4: 136
उनसे कहो: अल्लाह और रसूल की इताअत कबूल करो। फिर अगर वे तुम्हारी यह दावत कबूल न करें तो यकीनन यह मुमकिन नहीं कि अल्लाह ऐसे लोगों से मोहब्बत करे जो उसकी और उसके रसूल की इताअत से इन्कार करते हों।
आले इमरान 3: 32
जो लोग अल्लाह के उतारे कानून के मुताबिक फैसला न करें वही काफिर हैं।
माइदा 5: 44
झूठी बातों से परहेज करो ।
हज 22: 30
अल्लाह की बंदगी करो और उसके साथ किसी को साझी न बनाओ। अच्छा सलूक करो मां बाप के साथ, रिश्तेदारों के साथ, यतीमों और जरूरतमंदों के साथ, पड़ोसियों के साथ और साथ रहने वालों के साथ और मुसाफिर के साथ, और उनके साथ जो तुम्हारे अधीन हों। अल्लाह ऐसे आदमी को पसन्द नहीं करता जो इतराता हो और डींगें मारता हो और ऐसे लोग भी अल्लाह को पसंद नहीं हैं जो कंजूसी करते हैं और दूसरों को भी कंजूसी की हिदायत देते हैं, और जो कुछ अल्लाह ने अपने फजल से उन्हें दिया है उसे छुपाते हैं। ऐसे काफिर लोगों के लिए हमने रुसवा (बेइज्जत) करने वाला अजाब (सजा) तैयार कर रखा है। और वे लोग भी अल्लाह को नापसंद हैं जो अपने माल सिर्फ लोगों को दिखाने के लिए खर्च करते हैं।
निसा 4: 36-38
ऐ ईमान वालो! अपने सदके (खैरात) को एहसान जताकर और दुख देकर उस आदमी की तरह बरबाद न करो जो लोगों को दिखाने के लिए अपना माल खर्च करता है और अल्लाह और आखरी दिन पर ईमान नहीं रखता ।
बकर 2: 264
और कयामत के दिन तुम उन लोगों को देखोगे जिन्होंने अल्लाह पर झूठ घड़कर थोपा है और उनके चेहरे काले हैं। क्या घमंडियों का ठिकाना जहन्नम (नर्क) नहीं है?
जमर 39: 60
रिश्तेदारों को उनका हक दो और मिसकीन (मोहताज, जरूरतमंद) और मुसाफिर को उनका हक दो। फिजूलखर्ची न करो, फिजूलखर्च लोग शैतान के भाई हैं। और शैतान अपने रब का नाशुक्रा है।
बनी इस्राईल 17: 26-27
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो जानते बूझते अल्लाह और उसके रसूल (स. अ. व.) के साथ खयानत (धोखाधड़ी, विश्वासघात) न करो, अपनी अमानतों में खयानत न करो ।
अनफाल 8: 27
और जो कोई खयानत करे (धोखा देकर माल रख ले) तो वह अपनी खयानत समेत कयामत के दिन हाजिर हो जाएगा। फिर हर एक को उसकी कमाई का बदला मिल जाएगा और किसी पर जुल्म न होगा ।
आले इमरान 3: 161
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो अगर कोई फासिक (अल्लाह की नाफरमानी करने वाला) तुम्हारे पास कोई खबर लेकर आए तो छानबीन कर लिया करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम किसी गिरोह को अनजाने में तकलीफ व नुकसान पहुंचा बेठो, फिर अपने किए पर पछताओ।
हुजुरात 49: 6
ऐ ईमान लाने वालो ! बहुत गुमान करने से बचो (परहेज करो) क्योंकि कुछ गुमान गुनाह होते हैं। और न टोह में पड़ो और तुम में से कोई किसी की गीबत (चुगली, निन्दा) न करे। क्या तुम में से ऐसा है जो अपने मरे हुए भाई का गोश्त खाना पसन्द करेगा? देखो तुम खुद इससे घृणा करते हो। अल्लाह से डरो, अल्लाह बड़ा तौबा कबूल करने वाला और रहीम है।
हुजुरात 49: 12
(जब किसी आदमी में कोई बुराई मौजूद है तो उसे बयान करने मे क्या हर्ज है ? जवाब में प्यारे नबी (सल्ल.) में फरमाया - अगर किसी में कोई बुराई है और तुम उसकी गैर मौजूदगी में वह बुराई दूसरों को बताओ तो यही गीबत है। अगर वह बुराई उसमें न हो और तुम उसके सिर थोपो तो यह बोहतान और इल्जाम होगा )
तुम किसी ऐसे आदमी की बात न मानना जो बहुत कसमें खाने वाला हीन (नीच) है, ताने देता है, चुगलियाँ खाता फिरता है, भलाई से रोकता है, जुल्म व ज्यादती में हद से गुजरने वाला है, हक मारने वाला है, क्रूर है और अधम भी।
कलम 68: 10-13
देखो! तुम लोगों से कहा जा रहा है कि अल्लाह के लिए माल खर्च करो। तुम में से कुछ लोग हैं, जो इसमें कंजूसी कर रहे हैं। हालांकि हकीकत में वे अपने आप से ही कंजूसी कर रहे हैं। अल्लाह तो गनी है। तुम ही उसके मोहताज हो अगर तुम उसके हुक्म न मानोगे तो वह तुम्हें मिटाकर तुम्हारी जगह दूसरी कौम ले आएगा और वे तुम जैसे न होंगे।
मुहम्मद 47: 38
ऐ ईमान लाने वालो! ये शराब और जुए और देवस्थान और पांसे तो गंदे शैतानी काम हैं। अत: तुम इनसे अलग रहो ताकि तुम कामयाब हो जाओ । शैतान तो बस यही चाहता है कि शराब और जुए के जरिए तुम्हारे बीच दुश्मनी और कड़वाहट पैदा कर दे और तुम्हें अल्लाह की याद और नमाज से रोक दे, तो क्या तुम बाज नहीं आओगे?
माइदा 5: 90-91
और अल्लाह फसाद (लड़ाई-झगड़ा) फैलाने वालों को बिल्कुल पसन्द नहीं करता।
माइदा 5: 64
और जमीन में फसाद फैलाने की कोशिश न कर अल्लाह फसाद फैलाने वालों को पसन्द नहीं करता।
कसस 28: 77
जो गुस्से को पी जाते हैं और दूसरों के कुसूर माफ कर देते हैं ऐसे नेक लोग अल्लाह को बहुत पसन्द हैं।
आले इमरान 3: 134
जिस किसी आदमी को किसी के खून का बदला लेने या धरती में फसाद फैलाने के सिवाय किसी और वजह से मार डाला तो मानो उसने सारे ही इन्सानों का कत्ल कर डाला। और जिसने जिंदगी बख्शी (यानी जान बचाई) उसने मानो सारे इन्सानों को जिंदगी दी।
माइदा 5: 32
यतीम को मत दबाओ और मांगने वालों को मत झिड़को।
जुहा 93: 9-10
ऐ ईमान वालो। अल्लाह के लिए उठने वाले, इन्साफ की गवाही देने वाले बनो और किसी गिरोह की दुश्मनी तुम्हें हरगिज इस बात पर न उभारे कि तुम इन्साफ करना छोड़ दो, तुम्हें चाहिए कि (हर हालत में) इन्साफ करो। यही परहेजगारी और अल्लाह से डर से मेल खाती बात है। अल्लाह का डर रखो। बेशक अल्लाह उन बातों को जानता जो तुम करते हो।
माइदा 5: 8
ऐ लोगो। जो ईमान लाए हो, तुम क्यों वह बात कहते हो जो करते नहीं हो ? अल्लाह की निगाह में यह बात बहुत ही नापसन्दीदा बात है कि तुम वह बात कहो जो करते नहीं।
सफ्फ 61: 2-3
तबाही डंडी मारने वालों (कम तोलने-नापने वाले) के लिए। जो नापकर लोगों से लेते हैं तो पूरा लेते हैं। और जब उन्हें नापकर या तौलकर देते हैं तो कम देते हैं। क्या वे समझते नहीं कि उन्हें (जिन्दा होकर) उठना है, एक बड़े दिन। उस दिन संसार के सब लोग रब के सामने (हिसाब लिए) खड़े होंगे।
मुतफ्फिफीन 83: 1-6